पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जीवों को कर्म ज्ञानादिक अनेक साधनों से खिन्न होकर मी शातिन पाते देखकर भगवान शाडिल्य ने मक्तिशास्त्र प्रकट करने की इच्छा से बह भक्ति के सौ सुत्र करते हुए इस प्रेममार्ग को प्रवर्त किया। इसमें पहिले पूर्वोक्त सून कहा । अब भक्ति की जिज्ञासा अर्थात विचार आरंभ करते है ।।१।। यद्यपि शान- कमादिकों की भाँति भक्ति भी स्वसाध्य नहीं है तथापि जो भक्ति मार्ग पर प्रवत होते है उनको भगवान मक्ति देता है इस आशा से भक्ति-मीमांसा आरंभ करते हैं। सो भक्ति ईश्वर में पूरे अनुराग को कहते है ।।२।।वहाँ परा शब्द वामनाओं की निवृत्ति के हेतु और क्योंकि उसमें जो चित्त लगता है वह अमृत फल पाता है. यह महात्माओं ने कहा है ।।३।। उस शान से प्रीति नहीं होती ।। ४ ।। जेस काई किसी मनुष्य को जानता है कि वह अमुक है और उसको यह भत्ति ईश्वर विषयक ज्ञान मात्र है यह संदेह मत करो क्योंकि जान तो देषियों को भी होता है पर अमुक अधिकार है पर इतना जानने ही से उस मनुष्य की उस में प्रीति हो यह नियम नहीं । प्रियतम. कितव इत्यादि नाम से भगवान को पकारती थी। अथवा भक्ति क्योंकि पुरी भक्ति से ज्ञान का क्षय होता है ।।५।। जैसे श्रीगोपीजन को माहात्म्य-ज्ञान पूर्ण था तथापि जाती है। जैसा आपने श्री मुस से कहा है कि यद्यपि मैं चारों प्रकार की मुक्ति देता है तथापि मेरे भक्त मेरी सेवा नेह और विरोध दो वस्तु अलग है । और भी किसी के द्वेषी से विरोध वही करेगा जिसका उसमें पूर्ण अनुराग द्वेष से प्रतिकूल होने से और रस शब्द प्रतिपाद्य होने से उस भक्ति का नाम अनुराग है ।।६।।वयोंकि होगा और मन में यह बात नहीं क्योकि स्वरूप देषियों को भी होता ही है और रस परम आनंद रूप है। वह रस जिसको पाकर मनुष्य आनंदी होता है यह भक्ति स्वरूप ही है। इस कहने से पूजाविडवन को उपेक्षा। mov भक्तिसूत्र वैजयन्ती शाण्डिल्य-शतसूत्री भाषाभाष्य-सहित ॐ नमश्शाण्डिल्याय तन्मतप्रवर्तकाचार्येभ्यः श्रीवल्लभेभ्यश्च नमः जेहि लहि फिर कछु लाहन जी, आस न चित में होय । जयति जगत यह दोय ।। पावन करन. प्रेम वरन ॐ अथातो भक्तिविज्ञासा ।।१।। सा परानुरक्तिरीश्वरं ।।२।। सच्चे प्रम के अर्थ दिया है और ईश्वर शब्द माद्यम्म ज्ञान के हेतु है. वैसा श्रीगोपीजन ।। ३ ।। ज्ञानमितिचेन्न दिषलोऽपि ज्ञानस्य तदसस्थितेः ।। ४ ।। तयोपक्षयाच्च ।। ५।। देषप्रतिपक्षभावादसशब्दाच्च रागः ।। ७ ।। अनुर ति शन्न हदय की। से ज्ञान अर्थात मुक्ति वासना क्षय हो कोर कर नहीं लेते। भक्ति सूत्र वैजयंती पर