पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९०५

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भगवद्धियोग स्मरण में एक एक क्षण कोटि कोटि कल्प तुल्य असहय यंत्रणा सहते हुए बीतते हैं व संयोगलीता स्मरण से एक एक क्षाण लाख लास बरस तक स्वर्ग के सुख भोग के समान जीतते है उनके सब भले बुरे प्रारब्ध इस वियोग संयोन के अनुभव में भस्म हो जाते हैं। संसृतिरेषाम भक्तिः स्यान्नाज्ञानात्कारणालिदेः ।। ९८ ।। और जीवो की संसार को कारण अभक्ति है. अज्ञान नाही, कारण की असिद्धि से ।। १८ ।। अर्थात संसार के कारण भगवान् में अभक्ति ही बंधन की हेतु होती है क्योंकि वध मोक्ष का दाता ही जिस से कठा रहेगा उसे मोक्ष कहाँ। श्रीग्वेषां नेत्राणि शब्दलिगाक्षभेदाद्रवत ।। ९९ ।। (जो कतो कि जीव कैसे जाने इस पर कहते है कि इन जीवों को श्रीमहादेव जी की भाँति तीन नेत्र है अर्थात तीन प्रकार से ये जाने । कुछ तो शन अर्थात् वेदादिको से. कुछ लिंग अर्थात अनुमान से और कुछ अक्ष अर्थात् प्रत्यक्ष से जाने ।। १९ ।। अविस्तरोभायाधिकाराः स्युः क्रियाफासयोगात् ।। १०० ।। लय और उत्पत्ति क्रियाप्ल के संयोग से विकार है ।। १०० ।। अर्थात् जास्तविक निर्विकार भावों में क्रिया फल के संयोग से विधार प्रतीत होता है । भगवत्स्यरूप ज्ञानान्तर भक्ति पाने से मनुष्य वास्तविक स्वरुप जानेगा इस से भक्ति ही मुख्य है ।। इति ।। व्याकुल लखि सा जीवगन, शान करम बाहु मानि । कियो सूत्र शांडिल्य ऋषि, परम भक्ति की खानि ।। २ ।। सुमिरि राधिका-प्रानपति. ब्रज-जुवती-मन-पन्न । यह ताको भाषा तिलक, किय सदीय हरिनंद ।।३।। शांडिल्य सूत्र और उस का भाषा भाष्य हुआ । ७ अब पाठांतर १५ सूत्र, अभिज्ञायाः साहाय्यात इति जी उपासना सर्वस्व तथा श्रीकाछजिहथास्वामिकृत पाठ । २५ सूत्र, तस्यानुज्ञानाय सामान इति पूर्शक्त पाठ । ३० सूत्र, भात्मकपरा इति पूर्वोक्त पाठ । ३१ सूत्र, उभयपरा इति पूर्वोक्त पाठ । ३२ सूत्र, प्रत्यभिज्ञानवा इति पूर्णाक्त पाठ । ३४ सूत्र, वहाँ से स्वनेश्वर के पाठ से पूर्णेवन ग्रंथों के पाठ से बड़ा भेद है। यथा जन्मकमविदश्चाजन्मने प्राब्दात ३४ तत्व दिव्य स्वशक्ति मात्रोभावान ३५ मुख्यं तस्य हि कासय ३६ प्राणिवाननविभूतिषु ३७ यतराजसंवयोः प्रतिगंधाच्च ३८ वासुदेषेणीतिनेन्नाञ्चरभावत्वात् ३९ प्रत्यभिज्ञानाच्द ४० वृष्णिषु श्रेष्ठेनतत ४१ एवं सिदा च ४२ भक्रया भजनोपसंहाराल परार्थे हेतुल्वात् ४३ रागर्थम्प्रकीर्तितसाहचर्याचेतरेषाम् ४४ अन्तराले चशेषाः सरुपास्यादी च काडत्थान पवित्र्यमुपक्रमात ४६ तासप्रधानयोगात फलाधिक्यमेके ४७ नाम्नेति जैमिनि: सम्भवात ४८ अंगप्रयोगाणां यथाकाल सम्भवो गृहादिवत ४५ ईश्वरतुष्टेरेकोपिबली ५० अबन्यो अर्पणास्म सुखम ५१ ध्याननियमस्तु इष्टिसीक्रान्ति ५२ उदिभः पूजायानेष प्रयुक्तः ५३ पादोदकनु पायमव्याप्तः ५४ स्वयमप्यर्षित प्राइयमविशेषात ५५ निमित्तगुणण्यापेक्षाणादपराधेषु अवस्था ५२ पत्रादेवानमन्मथाहि वैशिष्ट्रयम् ५७ सुकृतजत्वात परहेतुभाषान्न क्रिया श्रेयस्यः ५८ गौणप्रेषिध्यमितरेण स्तुत्यर्थत्वात् साहचर्यम् ५९ बहिरंतः स्थभुभयमेविष्टसंबंधवल ६० प्रमानसत्यासत्वाभ्या विशेषात् ६१ स्मृतिकीयो: कथादेश्चातों प्रायश्चित्तमासात् ६२ भूयसामननुष्ठितिरिति नेदाप्रायणमुपसंहारानमहत्स्यपि ६२ लष्यपि नक्ताधिकारे महत् क्षेपकमपरसर्वहाराल ६४ ततस्थानत्वदन्यधर्माः खले बालीवत ६५ आनिद्य योनिधिक्रियते पारम्पयर्यात सामान्यका अतोहयविपक्कभाषानामपितानोके ६७ क्रमेकगत्युपपत्तेस्तु ६८ उत्क्रान्ति वाक्यशेषात् ६९ महापात किना भवित्त सूत्र वैजयंती ८६१ ४५ ताभ्यः Mirek