पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९१२

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पर भाष्य करके विशिष्टाद्वैत वैष्णव संप्रदाय संसार में फैलाया । इसी संप्रदाय में अगस्त्य और परशुराम के बनाये हरिहरोपासक और लक्ष्मी के उपासक वैष्णव शाखांतर में इस काल से बहुत पूर्व ही पंढरपुर में व्यास और सूर्य के अंश से निबादित्य ब्राहमण हुये, जिनको श्री विठ्ठलनाथ जी ने अपना सिद्धांत कहा और उसके अनुसार उन्होंने द्वैताद्वैत मत प्रवर्त किया । जैनों के बल से लुप्त संप्रदाय को श्रीनिवासाचार्य ने सूत्र और गीता पर भाष्य करके फिर से प्रवर्त्त किया । यह चारो संप्रदाय अर्थात् विष्णुस्वामी. मध्य, रामानुज और बिादित्य की पूर्व व्यवस्था हुई । ये संप्रदाय रूद्र, ब्रह्म, लक्ष्मी और सनकादि के क्रम से प्रवर्त्त किये हुये वास्तव में एक प्रगट अलग अलग संसार में प्रसिद्ध हैं। मध्वाचार्य से श्री जगन्नाथ जी ने आज्ञा किया था कि 'जो इन चारो संप्रदाय के बाहर है वह हमारा प्यारा नही है। इन्हीं संप्रदायों के चार उपसंप्रदाय हैं विष्णुस्वाभी का उपसंप्रदाय चैतन्य, रामानुज का नंद, मध्वाचार्य का प्रकाश और निवादित्य का स्वरूप । इनमें स्वरूप और प्रकाश की सप्नदाय कालबल से विच्छिन्न हो गई । ये चारो उपसंप्रदाय मूल संप्रदाय से अविरुद्ध हैं, केवल आचार्यों के रुचिभेद से नामांतर से प्रसिद्ध हैं । चतुर्भुजभुजच्छाया व्यवसायातसुनिर्भयाः । जयन्ति स सम्प्रदायाश्चत्वारो हरिवल्लभाः ।। १ ।। (उत्तराई) अथ श्रीविष्णु स्वामी संप्रदाय-परंपरा श्री पुरुषोत्तम, शिव जी, श्री नारद जी, श्री व्यास जी । व्यासजी को दो शिष्य शुकदेव जी और शांडिल्य । शांडिल्य के शिष्य गर्ग और कौंडिन्य । शुकदेवजी के शिष्य विष्णुस्वामी । विष्णुस्वामी से क्रम से परमानंद मुनि, आनंद मुनि, प्रकाश मुनि, श्रीकृष्णमुनि, नारायण मुनि, जै मुनि, श्रीमुनि, शंकरभट्ट, पद्मभट्ट, गोपाल भट्ट, श्रीधर भट्ट, श्याम भट्ट, राम भट्ट, सेतु भट्ट, कृष्ण भट्ट, दिवाकर भट्ट, कृपाल भट्ट, विद्याधर भट्ट, दिनकर भट्ट, मधुनिधान भट्ट, ज्ञान देव भट्ट, शुकदेव भट्ट, शिवदेव, शांतिदेव, दयालदेव, क्षमादेव, सन्तोषदेव, धीरजदेव, ध्यानदेव, विज्ञानदेव, महाचार्य, तत्वाचार्य, नृसिंहाचार्य, सूवाचार्य, सुबुद्धाचार्य, प्रबुद्धाचार्य, प्रबोधाचार्य, असुवाचार्य, रुद्राचार्य, भगवन्ताचार्य, रामेश्वराचार्य, ब्रहमबिधिचर्याचार्य, सुदयाचार्य, लक्ष्मनारायणाचार्य, ज्ञानदेव, नाम देव, विलोचनदेव इत्यादि विल्वमंगल जी तक सात से आचार्य हुए हैं, इसी से श्री महाप्रभु जी पहले से गिनने से सात सै सातवें आचार्य हैं। कहते हैं कि विष्णुस्वामी ने फिर से जन्म लिया था और व्यास अवतार कहलाते थे । श्री बल्लभी मत के अतिरिक्त श्री विष्णुस्वामी के संप्रदाय के लोग और कहीं कहीं भी मिलते हैं जैसा कि श्री प्रेमाकर गुसाई के शिष्य नारायण दास जी सारस्वत, जिनको श्री शुकदेव जी ने दर्शन दिया था । उन के पीछे पुरुषोत्तम जी और बंशीधर जी इस वंश में प्रसिद्ध हुए हैं । नाभा जी ने इन्हीं नारायण दास का भक्तमाल में वर्णन किया है । यह गद्दी नवल गोस्वामी के नाम से अब तक प्रसिद्ध है । ऐसे ही व्रज में और भी कुछ लोग इस संप्रदाय के हैं। अथ श्री मध्व संप्रदाय परंपरा देवता अशावतार पृथ्वीस्थित्यका पुण्यतिथि वायुदेव श्री आनंद तीर्थस्वामी ६८ माघ शुक्ल १ स्थलदक्षिणस्थवृन्दावने २ रुद्रदेव पानामतीर्थस्वामी १४ २ बद्रिकाश्रम ३ मन्मथदेव नरहर तीर्थस्वामी ८ पौष कृष्ण ३ अनीगोंदी ४गरुड़देव माधव तीर्थस्वामी १७ भाद्रपद कृष्ण १५ ४ हविरूपाक्षी रुद्रदेव अक्षोभ तीर्थस्वामी १५ ५ मेणुर भीमा तीर ६ हसदेव जय लीर्थस्वामी ९ आषाढ़ा कृष्ण ६ मलखेड़ा स्थल ९ ७ कार्तिक कृष्ण IS मार्गशीर्ष कृष्ण भारतेन्दु समग्र ८६५