पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९१४

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अथ श्रीरामानुज संप्रदाय परंपरा पुरुषोत्तम, लक्ष्मी, विश्वक्सेन, शठकोप, श्रीनाथ, पुंडरीकाक्ष, रामामेश्र, यामुनाचार्य, पूर्णाचार्य, रामानुज, गोविंदाचार्य, पराशर, वेदांताचार्य, कलिवैरिदास, श्रीकृष्णप्रसाद, लोकाचार्य, श्रीशैलनाथ, बरबर मुनि, बरदनारायण, श्रीनिवासदास, प्रणतार्तिहराचार्य, बरदाचार्य, वेंकटेश, बरदार्य, प्रणतार्तिहर, वेंकटार्य, वेंकटेश, वरदाचार्य, प्रणतार्तिहर, श्रीनिवास, वेंकटाचार्य, कृष्णाचार्य, शेषाचार्य, श्रीनिवासरंगाचार्य । यह तो वर्तमान वृंदावनस्थ स्वामी रंगाचार्य तक परंपरा लिखी है परंतु रामानुज संप्रदाय में चौहत्तर गद्दी हैं । और देवाचार्य से प्रबोधानंद, राघवानंद, रामानंद यह रामानंदी शाखा है । रामानंद से अनंतानंद, कृष्णदास. कालीदास, अग्नदास, नारायणदास, गोविंददास, कान्हरवास तक अग्नदासी शाखा है । और निवादित्य और रामानुज संप्रदाय से मिलकर श्रीजानकी घाट की और मिथिलापुर की संप्रदाय स्वतंत्र बन गई है। कितने साधु अग्रस्वामी के संप्रदाय के पौहारी बाबा को रामानुज के अंतर्गत मानते हैं पर महाराज विश्वनाथ सिंह ने अपनी गुरु परंपरा में इन लोगों को निबादित्य के अंतः पाती हितहरिवंश जी के संप्रदाय में माना है । अथ श्री निंबादित्य संप्रदाय परंपरा हंस, सनकादिक, नारद, निंबादित्य । निबादित्य का नाम निबार्क और नियमानंद भी है। इनकी माता जयंती और पिता अरुण द्राविड़ ब्राहमण । इसी से इनको आरुणी भी कहते हैं । अंतरंग रूप इनका श्रीललिताजी और रंगदेवी का है । मर्यादा में ये सुदर्शन चक्र का अवतार हैं । शिष्य परंपरा श्रीनिवासाचार्य, विश्वाचार्य, पुरुषोत्तमाचार्य, विलासाचार्य, स्वरूपाचार्य, माधवाचार्य, बलभद्राचार्य, पद्माचार्य, श्यामाचार्य, गोपालाचार्य, कृपाचार्य, देवाचार्य, सुंदर भट्ट, पद्मनाभ, उपेंद्र भट्ट, रामचंद्रभट्ट, वामनभट्ट, कुष्णभट्ट, पदाकरभट्ट, भूरिभट्ट, माधवभट्ट, श्यामभट्ट, गोपालभट्ट, बलभद्रभट्ट, गोपीनाथभट्ट, केशवभट्ट, गंगलभट्ट, केशव काश्मीरिभट्ट, श्रीभट्ट, हरिव्यासदेव । हरित्र्यासदेवजी के पाँच शाखा नीचे लिखे हुए के अनुसार यथा । शोभूराम, कर्णहरदेव, मधुरेश नरहरिदास, प्रहलाददास इत्यादि । दूसरी शाखा कर्णहरि, परमानंददेव, नागजी, मोहनदेव, आत्माराम, नारायण दास, भगवानदास, गिरधारीदास, गोपालदास । तीसरी शाखा शोभूराम, मधुरेशदेव, बदरीशदेव, जयरामदेव, कृष्णदेव, धर्म दास जी । व्यासदेव, परशुराम, हितहरिवंश, नारायणहित, वृंदावनहित, श्री गोविंदहित । पाँचवीं शाखा व्यास जी के पहले किसी महात्मा से है यथा श्री आशाधीर जी, श्रीहरिदास स्वामी, विट्ठलविपुलविनोदविहारण, विहारणदास जी, नरहरदेव जी, रसिकदेव जी, पीतांबरदेव, गोवनदेव, नरोत्तमदेव । रसिकदेव जी के दूसरे शिष्य ललितकिशोरी उनके मौनीदास जी जिनकी श्रीवन में टट्टी है । शोभूराम जी के भाई आत्माराम उन को दो शिष्य-परंपरा, एक संतदास की, एक माधव दास की । इस संप्रदाय में सुमुखन भक्त के पुत्र व्यासजी बड़े प्रसिद्ध हुए हैं, संवत् १६१२ में जन्म, पैंतालीस वर्ष की अवस्था में श्रीवन आए और बारह संप्रदाय चलाई। श्रीहित हरिवंश जी का निवास देवनगर, गौड़ ब्राहमण काश्यप गोत्र यजुर्वेद माध्यन्दनी शाखा, पिता व्यास मिन माता तारावती, वंशी का अवतार, संवत १५५९ वैशाख सुदी ११ को उन्म । इनके ताऊ नृसिंहाश्रम प्रसिद्ध भक्त थे । इन बारह भाई और स्त्री का नाम रुक्मिणी, मोहन जी इत्यादि तीन पुत्र और एक कन्या । श्रीस्वामिनी जी से अश्वत्थ वृक्ष पर मंत्र पाया । कृष्णदासी और मनोहरी दो स्त्री और व्याही । संवत् १५८२ कार्तिक सुदी १३ को श्रीराधावल्लभ जी को पाट बैठाया, पाँच भोग सात आरती का नेम रक्खा । इनका संस्कृत ग्रंथ श्रीराधासुधानिधि श्लोक २७० भाषा ग्रंथ पद चौरासी । मुख्य शिष्य नरवाहन, नाहरमल्ल, विट्ठलदास, मोहनदास. छबीलदास, नवलदास, वलीदास, परमानंद रसिक, हठी, हरिदास, खड्गसेन और गंगा, यमुना । इति श्री वैष्णव सर्वस्व परंएरावर्णने - उत्तरार्द्र समाप्ताः । चौथी शाखा

भारतेन्दु समग्र ८७०