पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९१५

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श्रीवल्लभीय सर्वस्व श्रीश्रीवल्लभाचार्यचरणकमलमिलिंदशरंद चिंतासंतानहतारो यत्पादांबुजरेणक। स्वीयानां तान् निजाचार्यान् प्रणमामि मुहुर्मुहु ।। रचना काल सन् १८७५ । युगल सर्वस्व' के भादों शुक्ल ८ संबत् १९३३ के उपसंहार में तथा चन्द्रावली नाटिका' के प्रथम संस्करण सम्वत् १९३४ के मुख्य पृष्ठ पर इसका उल्लेख मिलता है। सन् १८८८ में खंड्ग विलास प्रेस बांकीपुर ने भी इसे मुद्रित किया था। फिर १८९२ में भी इसका संस्करण खेड्ग विलास प्रेस का ही मिलता है।- सं. श्री वल्लभीय सर्वस्व दक्षिण में तैलंग देश में आंध्र प्रांत में आकबीड जिला में, खम्मम कांकरिविल्ल ग्राम में यजुर्वेद तैत्तिरीय शाखा भारद्वाज गोत्र में महादेव पात्र के वंश के ब्राहमण रहते थे। इसी वंश में रामनारायणभट्ट के पुत्र यज्ञनारायण सोमयागी हुए । वे वेद के अवतार थे । इन पर वेद पुरुष अत्यंत ही प्रसन्न रहते थे । जब इनको वेद में कोई संदेह होता तब स्नान करके वेद पुरुष का ध्यान करते और वेद पुरुष प्रत्क्षक्ष होकर संदेश-नाश कर देते । एक वेर मायावादियों ने हँसी से इनसे कहा कि आप वेद के अवतार हो तो बकरे से वेद पढ़वावो । तब यज्ञनारायण जी ने बकरे की ओर देखकर कहा "भोलुलायत्त्वं वेदानुच्चारय" । इतना सुनते ही बकरा वह पाठ करने लगा । ऐसे ही दक्षिण में उन्होंने अनेक चमत्कार दिखाए । ये श्री रामानुजाचार्य मत के बड़े पंडित थे । जब यज्ञनारायण जी ने पहिला सोमयाग किया तब अग्निकुंड में से यह शब्द सुन पड़ा कि ऐसे सौ सोमयाग के पीछे भगवान का अवतार होता है। बत्तीस सोमयाग करके ये देवलोक पधारे । इनके पुत्र गंगाधरभट्ट सोमयागी साक्षात शिवजी के अवतार थे, जिन्होंने अवभूत्थ स्नान करती समय लोगों को प्रत्यक्ष अपने केश में से जलधारा निकलती दिखाई । अट्ठाइस सोमयाग करके ये देवलोक गए । इनके पुत्र गणपति सोमयागी धे। काशी में पंडितों की सभा में इन्होंने गणेश की भाँति दर्शन दिया और इसी से सभा में इनका प्रथम पूजन होता था । एक बेर सब प्रसिद्ध नगरों में जाकर शास्त्र का दिग्विजय किया था । तीस यज्ञ करके ये देवलोक सिधारे । इनको तीन स्त्री थीं । इनमें ज्येष्ठ स्त्री के ज्येष्ठ पुत्र वल्लभ भट्ट सायंकाल की समय प्रहर दिन चढ़े के सूर्य की भाँति दर्शन दिया था। पांच यज्ञ करके ये भी देवलोक गए। इनके पुत्र लक्ष्मणभट्ट जी बड़े विद्वान साक्षात् अक्षर ब्रहम शेष जी के अवतार हुए । इनकी छोटी ही अवस्था में इनके पिता का परलोक हुआ था, इससे इनके मातामह ने लालन पालन करके इनको विद्या पढ़ाया था । हनकी स्त्री देवकीजी का अवतार श्रीइल्लमगारू जी थी। इनके तीन पुत्र हुए । बड़े भाई का नाम नारायणभट्ट उपनाम रामकृष्ण भट्ट । ये कुछ दिन पीछे सन्यासी हो गये, तब केशवपुरी नाम पड़ा । यह ऐसे सिद्ध थे कि खड़ाऊँ पहिने गंगा पर स्थल की भाँति चलते थे । मंझले श्री महाप्रभुजी और छोटे रामचंद्र भट्ट जी । ये महा भारी पंडित थे. वेदांत. मीमांसा, व्याकरण, काव्य और साहित्य बहुत अच्छा जानते थे । लक्ष्मणभट्ट जी के मातुल वशिष्ट गोत्र के ब्राहमण अपुत्र होने के कारण इन्हें अपने घर ले गए थे । कृष्ण कुतूहल, गोपाल लीला महाकाव्य इत्यादि कई ग्रंथ इन्होंने बनाए हैं । ये श्री महाप्रभु जी के विद्या में शिष्य थे और प्रायः अयोध्या में रहते थे । वादी ऐसे भारी थे कि प्रायः उस काल के सब पंडितों को जीता था । यहाँ तक कि इसी बाद के लाग पर इनको विष दे दिया । mo श्री वल्लभीय सर्वस्व ८७१