पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९१७

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Hor* ९ Po $ 4 शु. चं.रा. ५के. १२बु. ४ गु. मं. 1 सूर्य ०२।२२।११ लग्न ७।१०।१९।३१ दिन मान ३०।२८ रात्रिभान २९:३२ एक बेर श्री इल्लमगारूजी को व्रजयात्रा की इच्छा हुई और आपने अपने पति से निवेदन किया कि कृपापूर्वक व्रज चलिए परंतु भट्ट जी ने कहा कि पुत्र का यज्ञोपवीत करके चलेंगे । यद्यपि इएलमगारू जी ने पति की आज्ञा का कुछ उत्तर नहीं दिया तथापि व्रजयात्रा की आपकी बड़ी ही इच्छा थी । यहाँ तक कि एक बेर श्री महाप्रभु जी को गोद में लिए आप बैठी थीं सो ब्रज का स्मरण करके उनके नेत्रों में जल भर आया । सर्वान्तरयामी श्री महाप्रभु जी ने माता की इच्छा पूर्ण करने को जम्हाई लिया और नुखारविंद में चौरासी कोस ब्रज का दर्शन कराया । श्री हल्लमगारू जी को यह देखकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ और आपने लक्ष्मणभट्ट जी से सब वृत्तांत कहा । भट्ट जी ने कहा कि एक बेर हम अग्निशाला में भूमि पर शयन करते थे तब अग्नि ने स्वप्न में हमसे आज्ञा किया कि तुम इस बालक के विषय में संदेह मत करना सो यह बालक अलौकिक साक्षात् नारायण का स्वरूप है एक बेर श्री विश्वनाथ जी ने यह विचार किया कि श्री ठाकुर जी ने हमको तो माया मत फैलाने की आज्ञा दिया है और आप अपने संप्रदाय फैलाने को क्यों प्रगट हुए हैं, इससे एक बेर तो दर्शन करना चाहिए कि आपने कैसा वेष लिया है और क्या इच्छा है । यह विचार कर योगी बनकर एक सोने का बघनहा हाथ में लेकर श्री लक्ष्मणभट्ट जी के द्वार पर आये । श्री महाप्रभु जी उस समय अत्यंत रुदन करने लगे और कोई प्रकार से चुप न हों । तब लक्ष्मणभट्ट जी ने अपने पास बैठे हुए ज्योतिषियों से पूछा कि आज कल बालक के ग्रह कैसे हैं । ब्राहमणों ने उत्तर दिया कि ग्रह तो अच्छे हैं परंतु एक वघनहा इसके गले में पड़ा रहे तो अच्छा है । श्री लक्ष्मण भट्ट जी ने अपने शिष्यों को आज्ञा दिया कि अभी बघनहा मोल लेकर सोने से मढ़ाकर पोहवा लाओ । शिष्य लोग जैसे ही बाहर निकले वैसे ही देखा कि एक योगी बघनहा लिए खड़ा है । बड़े हर्ष से शिष्य लोग योगी को भीतर ले गए । श्री महादेव जी ने श्री महाप्रभु जी को कठुला पहना कर पूछा "भगवान कोयं वेषः" । श्री महाप्रभु जी ने उसी क्षण उत्तर दिया "सर्वेश्वरश्च सर्वात्मा निजेच्छात: करिश्यति यह सुनकर सब लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतने छोटे बालक के मुख से शब्द स्पष्ट और फिर संस्कृत कैसे निकला । किसी ने कहा योगी बड़े सिद्ध हैं, किसी ने कहा नहीं बालक ही बड़ा प्रतापी है । उस पीछे श्री महादेव जी कई बेर योगी के वेष में खिलौना लेकर प्रायः मिलने को आते थे । सं. १५४० चैत्रवदी ९ अर्थात् श्री रामनवमी रविवार को लक्ष्मण भट्ट जी ने वेदविधि से आप का यज्ञोपवीत किया । सोरो जी नामक प्रसिद्ध वाराहक्षेत्र में केशवनंद नाम के एक बड़े सिद्धयोगी वैष्णव संप्रदाय के थे । सो जब श्री महाप्रधु जी का चंपारण्य में प्रगट्य हुआ, उसी समय उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि इस श्री वल्लभीय सर्वस्व ८७३