पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९२

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क्यों इन बातन दीजिये कहा इन्हें उत्तर दीजिये ।१२३ सो कहा प्यारे सनात नहीं। इन बातन सों काहान नहीं। जल-पान के पूछनी जात नहीं ।१२४ YO मेट्यौ चाहे कठिन मनोभव की हुक है। एसो करि मोहिं सबे प्यारे नंदनंद जू सों पूछत मौन क्यों प्रैठि रही सब प्यारे मिली कहैं लावै मुख सौतिन के लूक है । गोकुल के चंद जू सों लागै जो कलंक तौ तू तुमरे तुमरे सब कोऊ कहें तुम्हें सांचो चौथ-चंद ना तो बादर को ट्रक है ।११८ आई केलि-मंदिर में प्रथम नवेली बाल बिरुदावलि आपनी राखो मिलो जोरा-जोरी पिय मन-मानिक छुड़ाएँ लेति । मोहि सोचिये की कछ बात नहीं । सौ सौ बार पूछे एक उत्तरु मरु के देति 'हरीचंद जू' होनी हुती सो भई चूंघट के ओट जोति मुख की दुराएँ लेति । चूमन न देति 'हरिचदै' भरि लाज अति अपनावते सोच बिचारि तवे सकुचि सकुचि गोरे अंगहि चुराएँ लेति । गहतहि हाथ नैन नीचे किए आँचर मैं पिया प्यारे बिना यह माधुरी छबि सों छबीली छोटी छातिन छिपाएँ लेति ।११९ मूरति औरन को अब पेखिये का । यह सावन सोक-नसावन है सुख छाँड़ि के संगम को तुमरे मन-भावन थामै न लाजै भरो । इन तुच्छन को अब लेखिये का । जमुना पै चलो सु सबै मिलि के 'हरिचंद जू' हीरन को बेवहार के अरु गाइ-बजाइ के सोक हरो। कांचन को ले परेखिये का । इमि भाषत हैं हरिचंद' पिया जिन आँखिन में तुव रूप बस्यौ उन अहो लाडिली देर न यामैं करो । आँखिन सो' अब देखिये का ।१२५ बलि झूलो झुलावो मुको उमको कित को दुरिगो वह प्यार सबै क्यों यहि पार्षे पतिब्रत ताऐं धरो ।१२० रुखाई नई यह साजत हो । उौड़ उमड़ि दग रोअत अबीर भए 'हरिचंद' भये ही कहा के कहा मुख-दुति पीरि परी बिरह महा भरी । अनबोलिबे ते नहिं छाजत हो । 'हरिचंद' प्रेम-माती मनहुँ गुलाबी छकी नित को मिलनो तो किनारे रह्यो काम झर झाँकरी सी दुति तन की करी । मुख देखत ही दुरि भाजत हो । प्रेम-कारीगर के अनेक रंग देखौ यह पहिले अपनाय बढ़ाय के नेह जोगिआ सजाए बाल बिरिछ तरे खरी। रूसिबे मैं अब लाजत हो ।१२६ आँखिन में साँवरी हिए में बसै लाल यह पहिले मुसुकाइ लजाइ कट क्यों बार बार मुख ते पुकारत हरी हरी ।१२१ चितै मुरि मो तन छाम कियो । जिय सूधी चित्तौन की साधे रही पुनि नैन लगाइ बढ्इ के प्रीति निबाहन को क्यों कलाम कियो । सदा बातन में अनखाय रहे । हैसि कै 'हरिचंद' न बोले कधी मन 'हरिचंद' कहा के कहा हवे गए दूर ही सौं ललचाय रहे । कपटीन सों क्यों यह काम कियो । नहिं नेक दया उर आवत क्यों मन माहि जो छोड़न ही की हुती करिकै कहा ऐसे सुभाय रहे । अपनाइ के क्यों बदनाम कियो ।१२७ सुख कौन सो प्यारे दियो पहिले धाइ के आगे मिली पहिले तुम कौन जेहि के बदले यौं सताय रहे ।१२२ सों पूछि के सो मोहिं भाखो । जानत कौन है प्रम-विथा केहिसों त्यों तुम ने सब लाज तजी केहि के चरचा या बियोग की कीजिये । कहे एतो कियो अभिलाखो । को कहि माने कहा समुझे कोऊ काज बिगारी सबै अपुनो 'हरिचंद जू' क्यों बिन बात की रारहि लीजिये । धीरज क्यों नहिं राखो । कर चबाइन में पडिकै 'हरिचंद जू' क्यों अब रोइ के प्रान तजौ अपुने भारतेन्दु समग्र १२