पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९५०

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->***** युगल - सर्वस्व दोहा न भरित नेह नव नीर नित, बरसत सुरस अथोर । जयति अपूरब बन कोऊ, बखि नाचत मन मोर ।।१।। तन्नमामि निज परम गुरु, श्रीवल्लभ द्विव - भूप । जाकी कृपा अपार लहि, उबरी हो भवकूप ।।२।। श्री बदावन राज है, जुगल केलि रस धाम । तह के परिकर आदि को, परनत या थल नाम ।। ३ ।। बस, सनी, परिचारिका, पशु पन्छी नर द । इन सब को बरनन करत, निज अनुभव हरिचंद ।। ४ ।। प्रेमवारि परजन्य जो, जिन सम धन्य न अन्य । सोह श्याम परजन्य परजन्य ।।५।। दादी नाम बरीयसी, सुमुख बखान । नानी देवी पाटला, जासी आन ।।६।। बड़ी मात श्री रोहनी पिता नंद सरदार माता जसुदाजू अहे. जा हित यह अवतार ।।७।। वह काका उपनंदजू अभिनंद प्रनाम। नदन अरु सनंद ये. काका छोटे जान ।।८।। तुंगा, अतुला, पीपरी कृबला पुनि पुनि रसधाम । उलटे क्रम सों जानिये, काकिन के वे नाम ।। १ ।। मामा जसवरधन, जसोधर जसदेव सुदेव । मौसी विदित जसस्विनी, मौसा मल्ल सुटेव ।। १० ।। तडडुल पुरट कुबेर ये. सगरं ददा ददा समान । । गोष्ठ कलोल करुग्ण ये. मातामह सम जान ।। ११ ।। शीला भेरी अस शिखा, पितामही सी होय । भगवती, सिद्ध विधाइनि सोय ।। १२ ।। जटिला भेला चरपरा, सुनरा भोरा करवालिका करालिका मातामही समान ।।१३।। मंगल पिंगश रंगापेठ, पट्टस माटर पिंग। नेह करत पितु से सवे, संगर संकर भंग ।। १४ ।। तरलाधिनी तरालिका शुभदा कुशला नारि । माशिकांगता बत्सला ताली आदि विचारि ।।१५।। और हु वृद्धा मेदुरा, भरी नेह चित चाय । हरि पै बत्सलता करत. जैसे जसुमति माय ।।१६।। परम नेहवारी अहै, नाम धनिष्ठा तथा तिलिम्बा अम्बिका, ताको जुगल सहाय ।। १७ ।। महायज्या, सुलभा गौतमि भारगी, छिलादि द्विज नारि ।। १८ ।। वेदगर्भ भागुरि दिज निरधारि । भारतेन्दु समग्न ९०६