पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९५१

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तांतिक, माली, मालू और मालाघर आदि दास है ॥३१ ।। पत्शव, मंगल और फुल्त कोमल और कपिल आदि छोटे बालक नाचि नानिक विचित्र वेष्टा करिके प्रभु सुविलास, विशालाक्ष, रसांक, रसशाला और बंधुक इत्यादि पान खवाइबेवारे है ।। ३३ ।। पयोत और आरिद नाम के पानी पियावे को काम करें तथा सारंग कुल आदि वस्त्र धरावे प्रेमकद नाम को अतर लगाये और मधुकंदला सैरंधी केसादिक संवारे है ।। ३५ ।। मकरदादिक सदा शृंगार करै है. तथा सुमना, कुसुमोल्लास. पुष्पडासहर इत्यादि चंदन और मातादिक दया. सुबंध, कपूर और सुगंधकुसुम आदि नाई है। केश को काम करे, ल लगावे, पाव वावे और दर्पण स्वच्छ, शीतल और प्रगुण आदि धन संबंधी काम करेंहे. अरु कमल, विमल आदि पीड़ा, खड़ाऊँ, पर विनमें पनिष्ठा मुख्य धाय माततुल्या है।। ३१ ।। पनिष्ठा, चंदनकला, गुणमाला, तडिलप्रभा, भरणी, ईदुप्रभा, शोभा और रंभा इत्यादि दासी है, और WHAGYM भाई श्री वशदेव से, भक्तन के अवय। छनमह जिन इति व किय, खल कुल संच प्रशंम ।। १९ ।। भाषी श्रीमति रेवती, जाको हरि पे चाय सच्य तथा जात्सल्य मिति, जाको अनुपम भाव ।। २० ।। दंडी कुंडली भद्रकृष्ण प्रात अहिन नंदित मंदिरा. नदी नंदा सात ।। २१ ।। धाय अविका को सुअन, विजय नाम को जौन । हरि सन रच्छत सर्वदा असि ले संग रहि तोन ।। २२ ।। दिव्य सक्ति कुलबीर पुनि. महाभीम रनभीम । रणधिर रणधिर सरप्रभ, सुर सभा बलसीम ।। २३ ।। इन आदिक हरि जेठ जे, गोप - बाल - सरदार पितु जयसू नित संग एहि, रच्छत सदा कुमार ।। २४ ।। वीरभद्र भद्रांग भट गोभट यक्ष सूरेस । भद्रमंडली भद्रबर से सुहद हमेस ।। २५ ।। विशाल, वृषभ, ओजस्वी, देवप्रस्थ, वरूथप, मिलिंद, कुसुमापीड़, मणिबंध, करधम, मरंद, चंदन, कुंद, कनिंद और कुलिक इत्यादि कनिष्ठ सखा है. ये सेषा करे हैं ।। २६ ।। सामासुदामा, किंकिणी, तोककृष्ण, शा. भद्रसेन, विलासी, पुंडरीक, विटकांक्ष, कलंधिका, प्रियंकर और श्रीदाम आदि समान सखा है; तिनम श्रीदामा मुख्य है. पीठमद है बड़ो धृष्ट है ।। २७ ।। संघ सखा की सेना को भद्रसेन सेनापति है, अरू तोककृष्ण तो श्रीकृष्ण की दूसरी प्रतिमूर्ति है, और यह श्रीकृष्ण को वह बहुत ही प्यारो है ।। २८ ।। सुषल, अर्जुन, गंधर्व, बसत, उज्वा. कोकिल, सनंदन और विदग्द आदि प्रिय नर्मसखा है ; इन सो मधुमंगल, पुष्पांक और स आदि पियक है और कहार, भारती, गांधबंध और षेध आदि श्रीकृष्ण के भगुर, भंगार, संधिक और ग्रहल आदि चेटक है, तथा रक्तक, पत्रक, पत्री, मधुकंठ मधुप्रत, सालिक, कोई रहस्य छिप्यो नहीं है ।। २९ ।। विट हे ॥३०॥ को हंसावें है ।। ३२ ।। हैं ।। ३४ ॥ को काम करे है ।। ३६ ।।। दिखावे हे ।। ३७।। हाला लिये साथ चले है ।।३।। 60 श्री युगुलसर्वस्व ९०७