पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९५२

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कुरंगी, गारी, सुलंबा और लंबिका इत्यादि दासी दधिमंथन, मार्जन तथा और घर के काम करै हैं ।। ४०।। विशारद, तुंग, नीतिसार, मनोरम और बावदूक इत्यादि दूत निकुंज विहार के उपयोगी हैं ।। ४१ ।। प्रसिद्ध। जुग बंदी आदि गान बदमान दोहा वृंदा, मेला, मुरलिका, वृंदारिका सुजान । दूती सबै निकुंज की. वृंदा तासु प्रधान ।।४२।। दजी बीरा नाम की, दूती परम जासों नहिं कोऊ बची, करत सबै जो सिद्ध ।। ४३ ।। सोभन दीपक नाम के, द्वै मसालची खास । मधुरराव सुविचित्ररव, ये पास ।। ४४ ।। चंद्रहास, सिव, चंद्रमुख, नचबैया ये तीन । सुखद, सुधाकर बहुरि, सारंग मृदंग प्रबीन ।। ४५ ।। सुधाकंठ, कलकंठ इन, रस लीन । सबै कलारत आति सुघर, गाय बजावें बीन ।। ४६ ।। सारंग, रसद, विलास ये, नाटक नट अभिराम । सब अभिनय जानहिं निपुन, करहि सदा नट काम ।। ४७ ।। दरजी रौचिक नाम को, गणअंगण सुसुनार । चित्र विचित्र चितेर दोउ, कर्मठ पवन कुहार ।। ४८ ।। अरु बर्द्धको, बढ़ई सुखरास । पोटी, मन्थन, दाम, अरु. कंठार आदि फर्रास ।। ४९ ।। कुमुल, कुंड, कंडोल अरू. कारंड करेंड अनेक । सेवक सेना में रहत, धरे दासपन टेक ।। ५०।। हंसी, बंसी गंगा. रंगा नाम । प्रिया, पिशंगी, धूमला, मणि, सारनी ललाम ।। ५१ ।। इन आदिक जे नैचिकी, तिन सो हरि को हेत । तिन में धबली मुख्य अति, निज कर जेहि तन देत ।। ५२ ।। वलीवई हैं अति भले. उत्पलगंध पिशंग। कपि सुन्दर दधिलोल है, नाम सुरंग कुरंग ।। ५३ ।। स्वान व्यान भ्रमरक दोऊ, विदित कलस्वन हंस । शिखी तांडविक शुक जुगल. बोलत परम प्रशंस ।। ५४ ।। नित्य बाग वृंदाविपिन, जहाँ जुगल रस केलि । करहि नित्य, को लखि सकै, बाहु बाहु पर मेलि ।। ५५ ।। क्रीडा गिरि गिरिराज है, नीलमंडपक घाट । गुफा बनी मणिकन्दली कलिकुंज रस ठाट ।। ५६ ।। गद्य पिंगला, केलिसरोवर को नाम मानसी गगा है और वाके मुख्य घाट को नाम पारंग है और वामै सुबिलास नाम की नाव है।। ५७ ।। नंदीश्वर नामा पर्वत पै इंदिरालय नामा सुंदर मंदिर है, जहाँ अनेक प्रकार की संगमरमर पत्थर की आमोदवर्दन नाम्नी सुगंध सो भरी बैठक है । जाके आगे पावन नामक सुंदर कुंड है, जापै मंदार नामक मणि को Otestue भारतेन्दु समग्र ९०८