पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

19*** SATION छोड़िके भाद्रपद ही में जन्म लियो । अब वर्षा ऋतु के २० दिन को एक ऐसे तीन पाद है तामै मध्य पाद में जन्म लिया । ताको भाव यह कि प्रथम पाद में उष्णता विशेष है और तृतीय में शीतता तासों मध्य के पाद में जन्म लियो, और ब्रह्मा विष्णु महेश्वर तीन देवता है तामे मध्य में विष्णु है ताको हेत यह जो प्रधान मध्य में हैं तासों मध्य पाद में जन्म लियो सो जाननो । अब कृष्ण पक्ष में जन्म लियो ताको कारण यह है कि आपको अपने नाम को पक्ष है तासों यह जनायो कि हम अपनो पक्ष थापेंगे और अष्टमी तिथि को कारण यह है कि अष्टमी शिवतिथि है, कल्याण रूप है, यता श्रीमहादेव जी परम वैष्णव है तिनकी तिथि है, यदा पंद्रहो तिथि के मध्य में अष्टमी है, सो प्रधान मध्य में रहै है तासों, यना अष्टमी जयतिथि है सो हम असुरन को जय करेंगे यह बनायो । वा यह श्री बसुदेव जी की जन्मतिथि है । और रात को जन्म लियो ताको हेत यह है कि हम चंद्रवंशी हैं सो चन्द्रमा रात्रि को राजा है तासों हम को दिन सों प्रयोजन नहीं । और अरात्र को जन्म लियो ताको हेत यह है कि वा समय में कोई कार्य नहीं कियो चाय है, स्वस्थ बेला है, तासों पा समय मेरे भक्त स्वस्थ रहे वा समय जन्म लियो चाहिए । और चंद्रमा के उदय होत जन्म लियो ताको हेत यह है कि जैसे चंद्रमा जगत को आह्लाद करे है तैसी आह्लाद हम करेंगे यह जनायो, या हम चंद्रवंशी है सो अपने वंशस्थ के उदय संग अपनो उदय कियो । और भगवान के जन्म समय आकाश में मेघ छाये याको हेत यह है जैसो मेघ सबको आनंद देत है तैसो हम आनंद देंगे, यद्वा मेघ प्रसन्न भये कि हमारा नाम घनश्याम श्रीठाकुर जी को होयगो, हमारी उपमा ब्रह्म को दी जायगी तासों प्रसन्न भये, यद्वा जल को नाम जीवन है सो जीवन जगत को हम करेंगे यह जनायो । और रोहिणी नक्षत्र पर जन्म लियो ताको भाव यह है कि जैसे चंद्रमा को अनेक नक्षत्र हैं तैसेही यद्यपि आप को अनेक सखी सेवन करें तथापि मुख्य श्री प्रियाजी ही हैं। और रोहिणी में जन्म ग्रहण करके आपने श्री बलदेव जी से सहोदरता सूचन कराई । बुधवार में आपने जन्म लियो ताको हेत यह है कि सब ग्रहन में बुध अत्यंत सुंदर है तासों आप अलौकिक सौंदर्य प्रगट करेंगे और बुध आप के वंश को पूज्य हू है तासों वंश को पक्षपात जनायो । वा "विष्णु चद्सुते" यासों बुध के दिन आप अवतीर्ण भए । काहू पुराण को मत सोमवार के हूँ जन्मदिन मनावे को है सो बाहू में पूर्वोक्त भाव जानने । इत्यादि अनेक भाव है कहाँ ताई लिखिये । अथ चरण चिन्ह वर्णन छप्पे स्वस्तिक स्यदन संख सक्ति सिंहासन सुंदर । अंकुस ऊरधरेख अब्ज अठकोन अमलतर ।। बाजी बारन बेनु बारिचर बन बिमलबर । कुंत कुमुद कलधौत कुभ कोदंड कलाधर ।। असि गदा छत्र नवकोन जव तिल त्रिकोन तरु तारग्रह । हरिचरन चिन्ह बत्तिस * लखे अग्निकुंड अहि सैल सह ।।१।। छत्र चक्र ध्वज लता पुष्प कंकन अंबुज पुनि । अंकुस ऊरधरेख अर्धससि जव बाएँ गुनि ।। पास गदा रथ जग्यबेदि अरु कुंडल जानो । बहुरि मत्स्य गिरिराज संख दहिने पुनि मानो ।। श्रीकृष्ण प्रानप्रिय राधिका चरन-चिन्ह उन्नीस बर । 'हरिचंद' सीस राजत सदा कलिमलहर कल्यानकर ।।२।। अन्य मत सों केतु छत्र स्यंदन कमल ऊरध रेखा चक्र । अर्ध चंद्र कुस बिंदु गिरि संख सक्ति अति बक्र ।। "श्री चरण चिन्ह के विशेष भाव भक्ति सर्वस्व नाम ग्रंथ में लिखे हैं, वहाँ देखो । XOL*644 श्री युगुलसर्वस्व ९१३