पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९५८

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लोनी लता लवंग की गदा बिंदुदै जान । सिंहासन पाठीन पुनि सोहत चरन बिमान ।। अष्टादस श्री चिन्ड श्री राधापद मैं जान । जा कह गावत रैन दिन अष्टादसो पुरान ।। जग्य सुवा को चिन्ह है काहू के पद सोइ । पुनि लक्ष्मी को चिन्ह हू मानत हरि पद कोह ।। श्री राधा पद मोर को चिन्ह कहत कोउ संत । = फल की बरछी कोऊ मानत कुस के अंत ।। अथ हस्त चिन्ह वर्णन जव खुर तोरन कमल लता वसी त्रिकोन ध्वज । वृक्ष शंख घट अग्निकुण्ड अंकुश गृह रथ गज । सफरी ऊरघरेख कलस फल सब मन भाये । छत्र गदा धनु सर सुचक्र अरु बिजन सुहाये । बर पानपात्र गो' सीप तिल स्वस्तिक श्रीश्रीकृष्णकर । 'हरिचंद्र' चिन्ह बत्तीस ये सोहत नित जन-सीस पर ।।२।। इति श्रीयुगलसर्वस्य के पूर्वार्द को दूसरो प्रकरण । अथ अष्ट सखिन के नाम। अपने मत सों-श्रीचंद्रावली जी, श्रीललिता जी, श्री विशाखा जी, श्रीचंपकलता जी, श्रीचंद्रभागा जी, श्रीराधासहचरी, श्रीश्यामा जी और श्रीभामा जी । इनमें श्रीचंद्रावली जी को स्वामिनीत्व है और सबन को सखित्व है याही सौ पंचाध्याई में अंतर्ध्यान और आविर्भाव और महारास तीनहूँ समै में काचित काचित् करिकै सात ही गिनाई है। और सप्तावरणात्मक, श्रीस्वामिनीजी तथा श्रीठाकुरजी को स्वरूपाहू है। यथा चक्रव्यूहात्मक, कालात्मक, सयोगात्मक और वियोगात्मक श्रीठाकुरजी को स्वरूप है । वियोगात्मक स्वरूप बृज में प्रगटे हैं और बुज ही में विराजत है, मथुरा द्वारका नाही जात । तथा श्री स्वामिनीजी शक्तित्रयात्मक- स्वामिन्यात्मक, संयोगात्मक, वियोगात्मक है, तिन मैं वियोगात्मक स्वरुप है वर्ष पहले सेवाकुल में प्रादुर्भाव भये हैं और संयोगात्मक स्वरूप पूर्णपुरुषोत्तम के साथ श्री यसोदा जी के यहाँ प्रगटे हैं और पंचावरणात्मक स्वरूप पंद्रह दिन पछे श्री बुषभानजू के घर प्रगट होत है । याही सो एक एक आवरण की सेवा के हेत एक एक सखी को प्रादुर्भाव है । और श्री चंद्रावलीजी युगल स्वरूप के प्रेम की मूर्ति है, रासलीला में विशेष रसपोषकता अर्यात परकीया विभाग सुख प्राप्ति की कारण है और स्वामिनी के मान के कारण इनको प्रागट्य है याही सो' एकादश सखा की भाँति सात सखी मुख्य है और याही सों वेणु में सप्तरध्र तथा गुसाई जी के घरहू सात बालकन को प्रादुर्भाव है । कोक महात्मा को मत है कि श्री स्वामिनीजी और श्नी चंद्रावलीजी को स्वामिन्यात्मक स्वरूप के अतिरिक्त एक एक संख्यात्मक स्वरूपहू है । यया फ्री स्वामिनीजी को राधा सहचरी वा रंगदेवात्मक और चंद्रावली पी को इंदुमुख्यात्मक । अथ अन्य मत सों अब्ट सखिन के जाल ललिता, विशाखा, तुंगविद्या , रंगदेवी, इंदुरेखा, चंद्रभागा, और चपकलता । एक के मत सों ललिता, विशाखा, चंद्रभागा, संध्यावली, तुंगभद्रा, श्यामा, भामा और तुलसा । एक के मत सों श्री चंद्रावली, ललिता, विशाखा, पदना, भद्रा, धन्या, रंगदेवी और श्यामा हैं। एक के मत सों ललिता, विशाखा, चंद्रभागा, श्यामा, भामा, कुसुमा, तुलसी और माधवी । एक मत में ललिता, विशाखा, चंद्रभागा, चपकलता, चित्रा, स्वर्णलेखा, इंदुमती और सध्यावली । इति श्री युगलसर्वस्व उत्तरार्ध को प्रथम अध्याय संपूर्ण । भारतेन्दु समन ९१४