पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९६०

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अथ वामहस्त के चिह्न लक्ष्मी, सीप, वृक्ष, वेदी, आसन, कुसुमलता अरु चामर । अथ श्री अकुर जी के दक्षिण हस्त के चिह्न । हाथी, अंकुश, घोड़ा, वृक्ष, बाण, गऊ, पंखा, मंडवा, बंशी, चक्र, माला और कमल । 1 अथ श्री अकुरजी के वाम हस्त के चिहन मैंडवा, कमल, तरवार. थापा, धनु, परिघ, बिल्ववृक्ष, मीन, बाण अस नंदावतं । अथ श्री ठाकुरजी के उत्सव । मादों' सुदी २ को दसूठन, भादों सुदी ५ को श्री चंद्रावलीजू को जन्म, क्वारबदी ८ को महीना को चौक, पौष सुदी ८ को अन्नप्राशन, माघ बदी ६ को नामकरण, वैशाख सुदी ९ को ब्याह और असाढ़ सुदी ३ को गौना । पूस सुदी ८ को श्री नंदजू को जन्म, माघ सुदी ६ को यशोदाबू को जन्म और सावन बदी ५ को अठवासा तथा अगहन सुदी २ को श्री ठाकुरजी कूख में पधारे हैं । कार्तिक सुदी १५ को यशपत्री को अंगीकार । आधिदैविक उद्भव, आधिदैविकी सुभद्रा, आधिदैविक अर्जुन, आधिदैविकी रुक्मिणी और आधिदैविकी सत्यभामा को ब्रज की लीला में अंगीकार हैं तैसे ही आधिदैविक बलदेवजी और रेवतीजी सदा व्रज में बिराजत है और मर्यादा श्रुतिरूपा गोपी इन को यूथ है। श्री ठाकुरजी के बूआ को नाम मैना है और धरानंद अर्थात् सुनंदजी की बेटी सुभद्रा श्री ठाकुरजी की प्यारी बहन है । श्रीबृषभानुजी बिवेक और श्री कीर्ति जी भक्ति को स्वरूप हैं तथा देवतान की आदिजननी महामाया देवकी जी को स्वरूप है और धर्म को स्वरूप बसुदेवजी को है । इन दोउन कों ब्रज में कबहूँ कबहूँ बाललीला के दर्शन होत है। गोलोक में श्री गोवर्द्धन को विस्तार बारह हजार कोस है और भगवान के आनंद सों उन की उत्पत्ति है श्री स्वामिनीजी के सात्विक भाव सों रास की उत्पत्ति है । तिरानबे कोटि रासलीला और उतने ही कुंज हैं, विनहूँ में चौरासी मुख्य हैं । निज निकुंज में श्रीठाकुर जी कबहूँ गौर विराजत है कबहूँ श्याम । सात्विक कुंज फूलन के है, राजस मणि कांच इत्यादि के और तामस धातु पाषाणादि के हैं । निर्गुण कुंज इच्छामय षट ऋतु संपन्न है । कुंज मंडल में पहलो निकुंज श्री यमुनाजी को, दूसरो अग्निकुमारिका को, तीसरो श्रुतिरूपा की मुखिया श्री चंद्रावली जी को और चौथो निज निकुंज है । ऐसे ही अंतरंग कुंज में इन स्वरूपन के आधिदैविक स्वरूप क्रम सों श्री यमुनाषी, श्री राधा सहचरी, श्री चंद्रावलीजी और जुगल स्वरूप विराजत हैं और वे स्वरूप अलौकिक मनुष्य के ज्ञान के बाहर के हैं । जिन स्वामिनी और सखिन को जगत भजन करत है वे गुणमई हैं। श्री चंद्रावलीची को गाँव बृज में रिठौरा है । नवधा भक्ति वात्सल्य में तो श्री नवनंद के स्वरूप में और शृंगार में सखी स्वरूप में रहत हैं । बुज में अनेक अवतारन के बरदान सो' श्रुतिरूपा, ऋषिरूपा, यज्ञसीता. रमासहचरी, लोकालोकबारी, रजोगुण की, तमोगुण की, सतोगुण की, कोशलपुरी, पुलिंदी, श्वेतद्वीप की, मिथला की, ऊर्धबैकुंठ की, भूमिगोलोक की, अजितपद की, दिव्या, विष्णुलोक की, अदिव्या, समुद्रकन्या, अप्सरा, पुरंधी, लता, गोपी, वर्हिष्मती, नागकन्या, सुतलनिवासिनी और श्रीरामावतार की मानवी इतनी जूथन को मनोरथ पूर्ण पुरुषोत्तम ने पूर्ण कीनो है। इन में जालंधरी तो रंगजीत नामक गोप की कन्या भई हैं और मत्स्य अवतार के बरदान की बहिर्मती अप्सरा नागकन्या और सुतलवासिनीन ने बृज के पास वर्हिषल नगर में जन्म लीने हैं । रिषीरूपा बंग देश में मंगल गोप के घर पाँच हजार उत्पन्न भई है । और श्री नंदरायजी ने इन को बंगाले सो लाय के महल में रक्खी हैं । कोशल की स्त्री नव उपनंद की पत्नी हैं । मालव को राजा दिवस्पति गोप ब्रज में बसत है सो देवतान की स्त्री वा की कन्या गोपी भई हैं । सिंधु देश को राजा बिमल वाके यहाँ अवध और मिथिलापुर की स्त्री एक करोड़ प्रगटी हैं । ये पहले कामबन में रहीं, फेर द्वारका गई, जासों इनको राज्यलीला प्रिय है। दक्षिण में उशीर नगर

भारतेन्दु समग्र ९१६