पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९६१

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HORA क गोप पानी म बरिसबे सों ब्रज में आय बसे हैं विन की बेटी यज्ञजानकी और पुलिंदी भई है । दिव्य बाह, गोपेष्ट, पतंग, भार्गव, शुक्ल और नीतिविद ये छ: लघु वृषभान है। इनके घर ऊर्द विष्णुपदवासिनी, स्मासखी, जलकन्या, श्वेत दीप की स्त्री लोकाचलवासिनी और अजितपद की स्त्री प्रगटी है । वीतिहोत्र, श्रुत, अग्निभुक, गोपति, श्रीकर, शांत. पावन, शांभ और ब्रजेश ये नवलघु उपनंद हैं । त्रिगुणा और दिव्या दिव्या के यूथ को इनके घर प्रागट्य हैं। और अवतारन में स्वकीया छोड़ के और स्त्री सों रमण करें तो धर्म की मर्यादा जाय वाही सों जब पूर्ण पुरुषोत्तम प्रगटे हैं तब इन सबन को मनोर्थ पूर्ण भयो है। विशेष कर के श्री रामावतार की स्त्रीन को ब्रज में प्रागट्य है जासों श्रीरामजू साक्षात् वासुदेव स्वरूप और मर्यादा पुरुषोत्तम है और अत्यंत ही सुंदर हैं, देखतमात्र स्त्रीजन को चित्त हरन करते हैं सो मर्यादा पुरुषोत्तम में आसक्त होह के पुष्टि पुरुषोत्तम सों रमण की आधिकारिणी होत हैं । ताहू मैं अग्निकुमार देडकारण्य के पाँच हजार ऋषी को मुख्य नित्य लीला में अंगीकार है क्योंकि पुरुष होइ के प्रभु में इन के स्त्रीभाव कीन्हो है, सो कुमारिकान को यूथ जा की मुखिया श्री राधा सहचरी जू है, इन्हीं ठंडकारण्य के ऋषिन को है। सुजस गोप की स्त्री जसा सों कीर्ति जी को प्रागट्य है । सुनैनाजी इन की अंश हैं । चंद्र वंश में कुरंग नामक राजा और वा की स्त्री विशालाक्षी सों सुनैना बू की उत्पत्ति है। श्री जानकी बू इनहीं के गृह प्रगटी हैं और मंदोदरी, पृथ्वी, पार्वती और सुनयना इन सबन सों आप सों मातु संबंध है । जब ऋषिन को ब्रह्मतेज एक घड़ा में बंद होय के रावन के पास आयो तब मंदोदरी ने वाको अपने गर्भ में धारण कियो सो नारद जी के कहिबे सों रावण ने वा गर्भ को पीड़ित करि वा घडा में भरि के जनकपुर के पास गड़वाय दियो । ताही सो श्री जानकी जी प्रगटी हैं । और श्री लक्ष्मन जी सब ब्रहमान के, भरथ जी सब विष्णुन के और शत्रुघ्न जी सब शिवन के आधदैविक स्वरूप हैं । आल्हादिनी, चारुशीला, अतिशीला, सुशीला, हेमा, लक्ष्मना ये श्री जानकी जी की कुंजन की, शोमना, सुभद्रा, शांता, संतोषा, शुभदा, सत्यवती, सुस्मिता, चावंगी, लोचना, हेमांगी, क्षेमा, क्षेमदात्री, सुधात्री, धीरा, घरा और चारुरूपा, ये सोरह सिंगार की, माधवी, मनोजवा, हरिप्रिया, वागीशा, विद्या, सुविधा, नित्या और वैसा ये आठ अंग की मुख्य सखी है। इति श्रीयुगलसर्वस्व के उत्तरार्द्ध को द्वितीय अध्याय स्फुट प्रकरण समाप्त भयो । ३ अध्याय अब प्रसंगवशात् अन्य अन्य रहस्य निरूपण करत हैं। १ । रसिक जन और महात्मान के निकुंजादि वर्णन में अनेक मत है, तिन को परस्पर विरुद्ध देखि कै शंका न करनी काहे सौ कि यह तो निकुंजलीला भाव सिद्ध है जैसो जाको भाव को अधिकार है वैसो वाहि दर्शन होत है। २ । रहस्य पुराण में तिरानबे कोटि रासलीला लिखी हैं । ३ । तिरानबे कोटि कुंजहू हैं । ४ । धाम एक भूमंडल पर श्रीवृंदावन, एक गोलोक को नित्य वृंदावन । ५ । सव कुंजन में ८४ कुंज मुख्य है । याही सो ८४ सेवक हू श्री महाप्रभु जी ने अंगीकार किए हैं । ६ । श्रीठाकुरजी के गुणमय नौ स्वरूप उन की मा- १ अजा २ अरूपा ३ निर्गुणा ४ निराकारा ५ सनातनी ६ निरीहा ७ परब्रह्मभूता ८ अविनाशिनी और ९ निरंजना । सो इन नओ स्त्रीन सों श्रवणादिक प्रेम भक्ति उत्पन्न होत भई । ७ । और निर्गुण स्वरूप श्री ठाकुरजी को एक सच्चिदानंदघन, ताकी स्त्री अलौकिकी, तासों प्रेम लक्षणा उत्पन्न भई, ताके सहज, सुहित और सुहत तीन पुत्र भए । ८ । प्रवणादिक प्रेमन को एक एक को नौ नौ पुत्र भए तेही ८१ और तीन प्रमलक्षण के पुत्रन के पुत्र सब मिलि के चौरासी प्रकार प्रेम तेई निकुंज होत भए । ९ । श्रवण की भार्या श्रुति ताके नौ पुत्र सूक्ष्मकुंज, उनकी संज्ञा, उनके नाम यथा प्रीतिकुंज, प्रेमकुंज, कंदर्पकुंज, लीलाकुंज, मज्जनकुंज, विहारकुंज, उत्कंठकुंज, मोहनकुंज, युगुलकुंज । १० । कीर्तन की स्त्री नर्तकी ताके नौ देहकुंज पुत्र भए यथा हावकुंज, भावकुंज, कटाक्षकुंज, अलककुंज, मुक्ताकुंज. भृकुज, वेनीकुंज, रोमराजीकुंज, नीवीकुंज । ११ । अर्चन की मार्या पूजा ताके नौ पुत्र विहारकुंज, यथा कटिक्षीणकुंज, मानकुंज, भ्रमनकुंज, तिष्ठनकुंज, संगीतकुंज, आलस्यकुंज कलकूजितकुंज, विविधाकारकुंज, दुकूलकुंज, कुचकुंज । १२ । पाद सेवन की स्त्री पादोदका ताके नौ अंगारकुंज यथा नेत्रकुंज, कुंडलकुंज, हारकुंज, श्री युगुलसवस्व ९१७