पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९७

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न 'हरीचंद' पिया बिनु नींद न आवै साँपिन सी बड़े तोरे नैना रे प्यारी लगै सेज हाय मोरी तड़पत रैन बिहाय ! प्यारी तोरा रस भरा जोबन जोर मीठे मुख जाय मोसों सेजरिया चढिलो न जाय ।५३ बैना रे प्यारी । पूरबी तड़पत छैला काहे छोड़ चली रे प्यारी मार गई सैना रे प्यारी ।६० अजगुत कीन्ही रे रामा । साँवरे छैला रे नैन की ओट न जाओ। लगाय कांची प्रीति गए परदेसवा तुम बिन देखे मोरे नैना अति ब्याकुल अजगुत कीन्हीं रे रामा । इक छिन मुख न छिपाओ । बारी रे उभिरि मोरी नरम करेजवा सदा रहो मोरे नयनन आगे बसी मधुर बजाओ 1 बिपति नई दीन्हीं रे रामा । 'हरीचंद पिय प्यासी अँखियन सुंदर रूप दिखाओ।६१ अजगुत कीन्ही०। ना बोलौ मोसौ मीत पियरवा जानि गए सब लोगवा । 'हरीचंद' बिन रोई मरौं रे खबरियौ न लीन्ही रेरामा । तुमरी प्रीत छिपी न छिपाए. अब निबहेगी बहुत बचाये, अजगुत कीन्हीं ।५४ इन दहमारे नयनन पीछे यह भोगन पर्यो भोगवा । आवन की कट्टआज पिया की 'हरीचंद' ब्रज बड़े चवाई. कहत एक की लाख लगाई. सुरति लगी मेरी सखियाँ । उड़ि उड़ि अंचल जोबन उमगत कठिन भयो अब घाट-बाट मैं हमरो तुमरो संजोगवा ।६२ फरकत मोरी बाई अखियाँ । एरी सखी ऐसी मोहिं परी लचारी रे । का करौं मीत मोहन सों मोलत हि बनि आयो, 'हरीचंद' पिय कंठ लागि के होइहैं ये छतियाँ सुखियाँ ।५५ पैयाँ परत बिनती करत हा हा खात भैरवी बलि बलि जात गिरिधारी रे । 'हरीचंद' पियरवा निकट आय मेरे पग सों, रैन की हो पिय की खुमारी न टूटे । रहत मुकुट छुवाय ऐसे ढीठ लंगरबा सों हारी रे ।६३ बहुत जगाय हारी मोरी सजनी नींदड़िया नहीं छुटै । राग सिंदूरा भोर भए गर लगत न प्यारो अधर-सुधा नहिं छुटै । भौंरा रे रस के लोभी तेरो का फरमान । 'हरीचंद' पिया नींद को मातो सेज को सुख नहिं लूटै।५० तू रस-मस्त फिरत फूलन पर करि अपने मुख गान । शिकारी मियाँ वे जुलफों का फन्दा न डारो । इत सों उत डोलत बौरानो किए मधुर मधु-पान । जुलफों के फंदै फसाय पियरवा नैन-बान मत मारो। 'हरीचंद' तेरे फंद न भूलू बात परी पहिचान ।६४ पलक कटारिन मार भवन की मत तरवार निकारो। 'हरीचंद' मेरे जुलमी घायल छोड़ि न हमैं सिधारो ।५७ खयाल न जाय मोसो ऐसो झोका सहीलो ना जाय । झुलाओ धीरे डर लगै भारी बलिहारी हो बिहारी, अरे प्यारे हम तुम बिनु ब्याकुल आ जा रे प्यारे । मोसों ऐसो झोंका सहीलो न जाय । तड़पत प्रान हमारे तुम बिन हो दरस दिखला जा रे प्यारे । देखो कर धर मेरी छाती धर धर करै 'हरीचंद' तुम बिना तलफत गर लपटा जा रे प्यारे । पग दोऊ रहे थहराय हाय । अरे प्यारे जल बिन मरत मछरिया 'हरीचंद' निपट मैं तो डरि गई प्यारे इनहिं जिला जा रे प्यारे ।५८ मोहि लेहु झट गरवाँ लगाय । पूरबी वा गौरी न जाय मोसौं ऐसो झोंका सहीलो ना जाय ।६५ पिअरवा रे मिलि जा मत तरसाओ । तुम बिन ब्याकुल कल न परत नीदड़िया नहिं आवै, मैं कैसी करूं एरी सखियाँ । छिन जलदी दरस दिखाओ । 'हरीचंद' पिय बिनु अति तड़पें 'हरीचंद' पिया अब न सहोगी खुली रहें दुखियाँ अँखियाँ ।६६ धाइकै गरवा लगाओ ।५९ खयाल प्यारी तोरी बाँकी रे नजरिया सखियाँ री अपने सैया के कारनवा हरवा गॅथि गूंथि लाई पूरबी सोरठ प्रम तरंग ५७