पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९७२

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सांसारिक विषयो स कलुषित हे तो वे लोग यदि यह रहस्य कहें सुने तो उलटे अपराधी हों । यह तो बलकमल अधिकारी नहीं है। उन की प्रति सहव ही नीच है और चित्त की भाँति जो भक्त संसार में रहते हैं उन्हीं के कहने सुनने के योग्य है, क्योंकि सिंगार भावना सिंहनी का दूध है, जो या तो सिंह के बच्चे के मुंह में ठहरे या स्थर्ण के पात्र में । और पात्र में रक्यो तो फट जाय जैसे ही यह उत्तम रस पात्र बिना नहीं ठहरता । और बाल भाव तो गऊ का दूधडे अनेक प्रकार के सत् पात्र में ठहर सकता है यद्यपि नास्तिक इत्यादि खटाई और बहिर्मुख से पीतल के पात्र में इस को भी विकार होता है तथापि

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श्री रामचन्द्र के दक्षिण चरण के २४ चिन्ह क्रम सों एड़ी में स्वस्ति चिन्ह । १ पीतरंग मध्य तरया में ऊई रेखा । २ लाल रंग । ऊर्य रेखा के बाये तरफ अष्टकोण ३श्वेत अरुण । श्री।४ । बालार्क सन्निभ । हला । ५ मुसल । ६ (स्वेत धूम्र) सर्प । ७ । सित । दाण । ८ । स्वत । पात अरुण हरित । आकाश । ९ । नील । अष्टदल कमल । १० । अरुण स्पंदन । ११ । विचित्र वर्ण जिसमें नारि पोहे स्वेत च । १२ । बिजुरी वर्ण । अंगूठे में जब । १३ । स्वेत रक्त । उर्द्ध रेखा के दक्षिण ओर कल्प वृक्ष । हरिद्वर्ण । अकुश । १५ । श्याम । ध्वज । १६ । लोहित चित्रित । मुकुट । १७ । तप्त कांचन वर्ण । चक्र । १८ । सिंहासन । १९ । रत्नमय । कालदह । २० । कंसावत । चामर । २१ । अत्यंत पणा । छन । २२ । सित राल । न । २३ । जपमाला (२४ चिन्ह) स्वेत, पीत, अरुण, हरित अरू बज्रवत । श्री राघव के बायें पदाब्ज के २४ चिन्ह क्रम सों पद मध्य में दक्षिण पर लौं उर्द्ध रेख की जगह पै सरयू । १ । सित । एड़ी में गो पद । २ । सित रक्त । सरयू के दक्षिण और भूमि । ३ । पीतरक्त सित । कुभ । ४ । स्वर्ण वर्ण कुछ स्वेत । पताका । ५ । चित्रवर्ण । जब फल । ६ । श्याम । अचंद्र । ७ । अक्ल । दर । ८ । सित कछ लाल । षटकोण । १ । महास्वत । त्रिकोण । १० अराण । गक्ष । ११ । श्यामला । जीवात्मा । १२ । दीप्तिरूप । अगुल में बिंदु । १३ । पीत । गोपद की बाई ओर । शक्ति । १४ । रक्त श्याम सित । सुधाकुंड । १५ । सित रक्त । त्रिवली । १६ । त्रिवेणीवत् । मछरी । १७ । रूपेवत । पूर्णसिंधु । १८ । धवल । वीणा । १९ । पीत रयत सित । पेशी । २० । चित्र विचित्र । धनु । २१ । हरित पीत अराण । त्रीण । २२ । चित्र विनित्र । मराख । २३ । चरण चंचु लाल । सित । चंद्रिका । २४ । सित पीत अरुण बिचित्र रंग। जो चिन्ह श्री रामजी के दक्षिण पद में है सोई चिन्द्र श्री जानकी जी के पाद में है और जो श्री रामय के वाम पद में सोई श्री लाडिली जी के दच्छिन पद में। उपसंहार वह पूर्वोक्त श्री युगलसर्वस्य अनेक प्रामाणिक ग्रंथों से संग्रह करके छापा गया। इसके छपने से अनन्य लोग रुष्ट न हो क्योंकि यह वजार बजार घेनन और घर घर बाँटने को नहीं छापा गया है केवल अनन्य अधिकारी लोगों के हेतु थोड़ी सी पुस्तके गुप्त रीति से छाप ली गई है। यह भी विदित रहे कि एक्ट २५ सन् १८६७ ई. की रीति के अनुसार रजिस्ट्री किया है और छापे के अन्य अन्य एक्ट के अनुसार इसका सब स्वत्व हमने केवल अपने हस्तगत रखा है इस्से भूल कर भी कोई इसी भाषा और इसी लिपि में वा किसी अन्य भाषा और अन्य लिपि में वा कुछ चटा बढ़ाकर वा कुछ हेर फेर कर भी छापने का उद्योग न करे नहीं तो वह कानून के अनुसार दंडनीय होगा । विदित हो कि सर्वसदाशिरीधार्यचरण आचार्यवर्य श्री महाप्रभु जी ने थुगल स्वरूप की सेवा और भावना ही अपने संप्रदाय में मुख्य माना है तथापि प्रचार अलसेश और बालासका कारण यही है संसार के स्वभावदुष्ट जीव इस उत्तम । भारतेन्दु समग्न ९२० Web