पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९७९

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का - 4* आठवे जो आवरण पूजा में भैरव कहाँ हैं तो दुर्गा गरुड़ विष्वक्सेन नारदादिक क्यों नहीं है। नवे बहुभक्त होना यह बड़ा दोष है । एकोदेवः केशवोवा शिवोवा । अत्रिस्मृति श्लोक ३३८ बहुभक्तोदीनमुखो मत्सरीकर बुद्धिमान् । एतेषांनैवदातव्यः कदाचिच्च परिग्रहः । दसवें एक भगवान सर्व व्यापी है उसी की पूजा में सबकी पूजा हो जाती है जैसा - श्रुति । एकादेवस्सर्वभूतेषु गूढः सर्व व्यापी भूतान्तरात्मा । कर्माध्यक्षस्सर्वभूताधिवासस्साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च । अनेक नाम उसी के हैं जैसा श्रुति । सुपर्ण विप्राः कवयोवचो भिरेकं संत बहुधा कल्पयंति । जैसा दूसरी श्रुति में ! इंद्र मित्रम्वरुणमग्निमाहुरथा दिव्यः ससुपणों गरुत्मान । और यह एक देव भगवान नारायण ही हैं जैसा श्रुति स्मृति कहती हैं । एको हवै नारायणो आस । सर्वे वेदायत्पद मा मनन्ति । वैदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यः । मत्तः परतरं नान्यत् किंचिदस्ति धनंजय इत्यादि वाक्यों से स्पष्ट है तो अलग भैरव की पूजा अप्रयोजन है । उसी का पूजा में सबकी पूजा आ गई । जैसा पुराण में लिखते है - यथाहि स्कन्द शास्त्रानान्तरोर्मूलावसेचनं । विष्णाराधनं तद्वत्सर्वेषामात्मनश्चहि । इत्यादि । ग्यारहवें भैरव शिव के स्वरूप हैं इनकी पूजा बिना भस्म त्रिपुंड के नहीं जैसा बिना भस्म त्रिपुंड्रेण बिना रुद्राक्ष मालया । पूजितोपि महादेवो नस्यात् पुन्य फल प्रदः इत्यादि और विष्णु पूजन में त्रिपुंड का निषेध है जैसा आचार माधव के दूसरे अध्याय में बौधायन । ब्राहमणानामयन्धर्मो यद्विष्णोलिंग धारणं । मदन पारिजात में ब्रहमपुराण का वाक्य है उर्द्रपुण्डन्द्रिजः कुर्यात् । ब्रह्मरात्र का वाक्य - धारयेतक्षत्रियाद्योपिविष्णुभक्तोभवेद्यदि । निर्णय सिंधु मदन पारिजात । पृथ्वी चंद्रोदय में भी - उर्ध्वञ्चतिलकंकर्यान्नय्यादै तृपुंडकं ! आचारार्क कमलाकगन्हिक में भी उर्ध्वपुंडविहीनस्य स्मशान सदृशम्मुखं । सार ग्रह में । ब्रहमरात्र में भगवा वाक्य योनधारयते मयों मामकं चिन्हमीदृशं । तंत्यजामि दुरात्मानमदीयाज्ञा ऽतिलधिनं ।तो इन वाक्यों से वैष्णवों को और विष्णुपूजन में ऊर्ध्वपुंड अवश्य आया 'भस्मी भवति तत्सर्वमूर्ध्वपुंड्रेविनाकृते' और भैरव के पूजन में त्रिपुंड की नित्यता तो अब कहिये एक कालावच्छिन्न पूजा कैसे कीजियेगा और एक स्थान पर भैरव विष्णु की मूर्ति कैसे बैठाते हो । बारहवें भैरवादिक उग्र देवता की पूजा तो सब लोगों को करनी ही अयोग्य है फिर उनको रत्न सिंहासन पर बिठाना और जगन्नाथ जी के संग पूजा करना कहाँ हो सकता है जैसा श्रीमद्भागवत में । मुमुक्षवो घोररूपान् हित्वा भूतपतीनथ । नारायण कलाश्शान्ता भजन्तिहयनुसूयवः ।। २५ ।। रजस्तमः प्रकृतयस्समशीलाभजन्तिवै । पितृभूतप्रजेशादीन श्रियैश्वर्य प्रजेप्सवः ।। २६ ।। तथा सार संग्रह में वशिष्टस्मृति । रजस्वलांसूतिकाञ्च श्वानंकाकञ्चगर्दभं । कुक्कुटम्बिडबराहञ्च पूपपाखंडिनन्तथा । वहिदेवालकं स्पृष्ट्वा सबासाजलमाविशेत् । गणेशंभैरवं दुग्गा रुद्रादीनुग्नदेवतान् । योर्चयेद्भक्तिमाविप्रो सवैदेवालकस्मृतः । और भैरवादिकों के वैसी ही गति मिलती है परम पद नहीं मिलता है जैसा श्रीमुख से आज्ञा करते हैं ७ अध्याय में । कामैत्तेस्तैहृतज्ञाना: प्रपद्यन्ते न्य देवता । तंतंनियममास्थाय प्रकृत्यानियताः स्वया ।। २० ।। योयो यांतातनुंभक्तः श्रदयार्चितुमिच्छति । तस्यतस्याचली श्रद्धां तामेवविदधाम्यहं ।। २१ ।। सतयाश्रयायुक्तस्तस्या- राधनमीहते । लभतेच ततः कामान् मयैव, विहिताहितान् ।। २२ ।। अंतवत्तुफलंतेषां तद्भवत्यल्पमेधसः । देवानदेवयजोयान्ति मदभक्तायान्तिमामपि ।। २३ ।। इससे मोक्ष की कामनावाले को दूसरे देवता की पूजा सर्वथा अयोग्य ही है और मोक्ष दान शक्ति केवल भगवान ही को है जैसा आचार प्रकाश से मत्स्यपुराण का वचन | आरोग्यं भास्करादिच्छेत् धनमिच्छेत् हुताशनात् । ज्ञानम्महेश्वरा हेन्मोक्ष मिच्छेज्जनानात् ।। दक्ष स्मृति में भी अंत दशा में । योगमभ्यसमानस्य ध्रुवकश्चिदुपद्रवः । विद्यावायदिवाविद्या शरणन्तु जनाईन । श्रुति भी कहती है यो ब्राहमणं विदधाति पूर्व योपै वेदांश्च प्रहिणोति तस्मै तहदेवमात्म बुद्धि प्रकाश मुमुक्षुर्वेशरणमहम्प्रपद्ये । इससे एकांत चित्त होकर भगवत्सेवा ही मुख्य है । बिना अनन्यता के फल नहीं होता जैसा श्री मुख से गाते हैं । ९ वें अध्याय में । महात्मनस्तुमाम्पार्थ दैवीप्रकृतिमाश्रिताः । भजन्त्यनन्य मनसो ज्ञात्त्राभूतादिगव्ययं ।। १३ ।। अनन्याश्चिन्तयन्तो मां येजनाः पर्युपासते । तेषान्नित्याभियुक्तानां योगक्षेम- वहाम्यहं ।। २ ।। अपिचेत्सु दुराचारो भजतेमामनन्यभाक । साधुरेव समन्तव्यस्सम्यग्व्यवहितोहिसः ।। ३० ।। क्षिप्रभवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिनिगच्छति । कौन्तेयप्रतिजानीहि नमेभक्तः प्रणश्यति ।। ३१ ।। तो इन बातों से यह निश्चय है कि जो लोग मोक्ष चाहने वाले हैं सर्व देव मय साराध्य मुमुक्ष शरण श्रीकृष्णचंद्र की पूजा उपासना करें और आग्रह कलुष से कलंकित चित्त को इन वाक्यों से स्वच्छ करें और जो किसी प्रकार की BREAK तहकीकात पुरी की तहकीकात ९३५ २ पूजन से