पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९८१

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मथ्या पुराण के आग्रह खंड के भैरव माहात्म्य में की लिखा हो तो लिखा हो । अब इस स्थान पर मैं उन वाक्यों को लिखता हूँ सुनिये । सूत सहिता के माहात्म्य में तो रत्न सिंहासन पर सात मूर्ति लिखी हैं जैसा' बलभद्र १ सुभद्रा २ श्री जगन्नाथ ३ चक्र ४ माधव ५ लक्ष्मी ६ सत्यभामा ७ 'एवं सप्तविधामूर्ति ब्रहमणः करयोगत:' 'अयंसप्तविधामूर्तिविधायभगवान् प्रभुः । अवतीर्णसस्थर्ववेद अंधश्चचतुर्भुजः । इत्यादि वाक्य प्रसिद्ध है और उसके पांचवें अध्याय के अंत भाग में और छठे अध्याय के पूर्व में शिये है पुस्तक लेके देख जीजिए । अब उत्कल चंद्र के माहात्म्य का वाक्य सुनिये । ५ अध्याय । एकदारुसमुत्पन्नाचतुर्दासम्भषिष्यति । फिर उसी अध्याय में । नीताचलगुवासंस्थे विश्वासमयम्पुः । आस्तलोकोपकाराय वलेन च सुभद्रया । सुदर्शनेन चक्रण दारूनानिम्मितेन च । फिर सातवें अध्याय में । तदाशावारूमयं प्रभोलिगचतुष्टयं । फिर अठारहवें अध्याय में । चतुर्मूर्तिस्सभगवान् यथापूर्वभयोदितः । फिर भी । सूकवेदरूपीदलक सामरुपोन्- केशरी । यनुसृष्टिस्त्वियम्भद्राचक्रमाधय॑नस्मृतं । भेदेचतुर्का भेष्टो यमेकराशिरमेदतः । इत्यादि इस इतने बड़े माहात्म्य में पुस्तक भर में भैरव का नाम कहीं नहीं है केवल एक स्थान पर पूवंग में क्षेत्रपालादि को बलिदान लिखा है दूसरे तीसरे अध्याय में मार्कडेय की यात्रा में मार्कडेय के मंत्र में भैरव शब्द पड़ा है और कहीं नहीं है फिर रत्नसिंहासन पर भैरव बैठना कहाँ रहा । और जो आप कहते हैं कि पूजा शाक्त मत से होनी चाहिए यह तो केवल आप की तोतली बोली है नहीं तो विष्ण पूजा शात रीति से आप न कहते और जगन्नाथ जी में वेष्णवी विधि तो उक्त महात्म्य के इस पाषय से सिद्ध है । यत्सयम्वैष्णवकर्म प्रतिमारिक कल्पनं । फिर । तेतुवैष्णवमाग्गोक्ताः महाभोगोपृथग्विधा इत्यादि और भैरवी विधि और भैरय देवता चांडालों के प्रात्यजों के है इस बात को सुन के क्रोध मत कीथिए । ये कृत्य कल्पतरू नामक प्रसिद्ध स्मात्तं ग्रंथ के घरे हुए देवी पुराण वाश्य को सुनिए । वर्णानसप्रिभेदेन देवास्थाप्य तु नान्यथा । प्रहमानुब्राहमणस्थाप्यो गायत्री सहितः प्रभुः । चतुपर्णैस्तथा विष्णुः प्रतिष्प्राप्यस्सुखार्थिभिः । भैरयोपियधावणेरन्त्यजानान्तथामतं ।। इत्यादि। महाप्रसाद को सब लोग छत है कुछ विचार नहीं करते यह सोचना तो केवल कूपमंडूकता है क्योंकि दक्षिण में बरदराज शेषशायी इत्यादि जितने वैष्णव तीर्थ है सबमें क्षेत्र के भीतर स्पशास्पर्श नहीं मानते तो कहिये अब कहाँ आग भैरवी क्षेत्र बनाइएगा । थोड़ा सा द्रव्य व्यय करके दक्षिण को यात्रा कीजिए तो महाप्रसाद की महिमा प्रगट हो और प्रसाद की ऐसी महिमा तो वाद सिद्ध ही है इसमें कौन सा सदेह हो सकता है जैसा सार संग्रह में पद्मपुराण का पाक्य । विष्णोनिवेदितान्न यो नश्नातित्पर्शज्ञकया । वायसोविडवराहश्न विष्टायांजायतेकृमि: ।। तथा नारागणभद्रकृत धर्मवत्ति में - पवित्राविष्णुनैवेद्यसुर सिर्षिभिः कृतं । नैवेद्य भक्षण विचार प्रथ में पद्मपुराण का वाक्य । रमानहमादयो देवास्सनकाचाशुकादयः । श्री नृसिंह प्रसायोग सवेदणान्तु वेषता ।। उत्कल संट के माहात्म्य के ३८ वे अध्याय में । पाकसंस्कारकणा संपकांचनदुष्यति । पक्षगास्सन्निधानेन सर्वतेशुपयस्मृताः ।। सार संग्रह में पाराह पुराण । नैषेध जगदीजस्य चान्नपानादिकनुयत् । भक्ष्याभक्ष्यविचारस्तु नास्तित भोजनेद्रिजाः । ब्रहमयनिर्विकार हि यथाविष्णुस्तथैषसः । विचार येप्रकर्वन्ति तेनश्यन्तिनराधमाः । उत्कल खंड के भावात्म्य के ६१ अध्याय में । चिरस्थमपिसशुद्ध नीतचदर देशतः ।। नालानिमहोदय के माहात्म्य के अध्याय में । क्रिमुक्तनाचबहुनाचाण्डालस्पृष्टमेवहि । कुक्कुरस्यमुखाभ्रष्ट लग्राहयन्नवतैरपि । तस्मात्तदन्नसहसा प्राप्तमात्रतदानियात् ! विचारस्मनकर्तव्यान कर्सच्याकथञ्चन । जगन्नाधानमेतश्शुष्क कृत्वाथभक्तितः । देशान्तरे जनोबस्तु भक्षेत्प्रतिदिनतिजा । सर्वपापविनिर्मुक्तस्सगळेत- परमपदं ।। इत्यादि अनेक प्रज्वलित पाश्यों से आग्रहियों का हृदयान्धकार नाश होय और साधु लोगों को आनंद होय और सत्मिा भगवान संसार की रक्षा करे सज्जन लोग इसमें की दुरक्तियों को क्षमा करें क्योंकि यह तो प्रति उत्तर है स्वयं कथन नहीं है। हरि शांतिः शांतिः शांतिः ।

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तहकीकात पुरी की तहकीकात ९३७