पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तृतीय विष्णु पुराण १ आदि एवं अंत दो भाग में २३००० तेईस सहस श्लोक, उसमें आदि भाग ६ अंश में विभक्त । मैत्रेय- पराशर संवाद वराह कल्पोपाख्यान प्रथमभाग प्रथम अंश १. सृष्टि का आदि कारण एवं सृष्टि वर्णन २. देवादिन की उत्पत्ति ३. समुद्र मंथन ४. दक्षादि वर्णन ५. ध्रुव चरित्र ६. पृथु चरित्र ७. प्रचेता आख्यान ८. प्रहलाद उपाख्यान ९. प्रहलाद राज्य का पृथक आख्यान । प्रथम भाग द्वितीय अंश - १. प्रियव्रत उपाख्यान २.दीप और वर्ष निरूपण ३. पाताल कथन ४. नरक कथन ५. सप्तस्वर्ग निरूपण ६. सूर्यादि संचार ७. भरत चरित्र ८. मुक्तिमार्ग निरूपण ९. निदाघादि मृतु संवाद। १. विष्णु पुराण में २३ हजार श्लोक हे परंतु भूलकर सुखसागर के बारहवें स्कंध में तीस हजार लिख दिया । यही नहीं वरच चंद कवि ने भी रायसा में २३ हजार चार सौ लिख दिया । परंतु रायसा के कई एक पुस्तकों में ३३४०० और रामरत्न गीता में अस्सी हजार लिख दिया परंतु तुलसी सदार्थ में तेईस हजार लिखा । मेरी राय से, जिन जिन पुस्तकों में अंतर है उन सबको यहाँ लिख देता हूँ पाठकगण स्वयं विचार कर लें। सुखसागर में मक्खनलाल ने लिखा है । ब्रहापुराण दश हजार वो पद्म पुराण पचपन हजार वो विष्णु पुराण तीस हजार वो शिवपुराण चौबीस हजार वो श्रीमद्भागवत पुराण अठारह हजार वो नारद पुराण पच्चीस हजार वो मार्केडेय पुराण नौ हजार वो अग्नि पुराण पंद्रह हजार चार सौ वो लिंग पुराण ग्यारह हजार वो वाराह पुराण चौबीस हजार वो स्कंद पुराण इक्यासी हजार एक सौ वो वामन पुराण दश हजार वो कूर्म पुराण सत्रह हजार व मत्स्य पुराण चौदह हजार वो गरुड़ पुराण उन्नीस हजार वो ब्रहमाण्ड पुराण बारह हजार श्लोक हैं। पृथ्वीराज रासो में लिखा है पढरी-ब्रहमन्यदेव सम वासुदेव । अष्टादस पुरान तिन कहै सभेव ।। तिन कहो नाम परिमान ब्रन्नि । जिन सुनत सुद भव हो तन्नन्नि ।। ब्रहम पुरान दस सहस जुट्टि । जिहि पढत सुनत तन तप्प छुट्टि ।। पंचास पंचह गन्नि । पग्रह पुरान तिन कहयौ ब्रन्नि ।। तेईस सहस सै चारि जानि । विष्णु पुराण विष्णू समानि ।। चौबीस सहस कहि शिवपुरान । तिहि पढ़त सुनत सम अमियपान ।। अठार सहस भागवत मेव । करि पार परिष्यत सुक्कदेव ।। नारद पुरान कहि पाव लाख । तहाँ मुक्ति मोद आनंद भाख ।। मारकंड नाम तेहस हजार। पौरान पवित्र सो दुख हजार ।। पंद्रह हजार संख्या सपूर । पढ़ि पाप चवदै हजार सै पाँच पडिट । भवषित पुरान सो पाप बढि ।। ब्रह्मवैव्रत सहस केवल गिनान कथि भक्ति सार ।। रुद्रह हजार लिंगह पुरान । आनन्द अर्थ आगम गुरान ।। बाराह पौरख पुरान तिन अमित सक्ति ।। हजार इक्यासी कहि विवेक । स्कंद पुरान भव भक्ति एक ।। हग्यारह सहस बावन सु. अछ । पौरान सुनत सुधि अग्ग पछ ।। सत्रह हजार कूरम पुरान । भाषा विनोद प्राक्रम गुरान ।। विद्या हजार मित मछ देव। विधि संख उदरे सेव मेव । उनहस सहस गरुडह पुरान । श्रोतान भक्ति ब्रह्मांड पुरान बारह सहस । करि व्यास भक्ति प्रभु कंस नंस ।। पंद्रह हजार अरु च्यारि लाख । सम ब्रहम व्यास कहि चंद भाख ।। अग्नि पुरान अठार । चौबीस सहस भक्ति। डरान । भारतेन्दु समग्र ९४०