पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९८५

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प्रथम भाग तृतीय अंश - १. मन्वन्तर कथा २. वेदव्यास अवतार ३. नरक उतार और कर्म ४. सगर एवं औघ संवाद में सर्व धर्म निरूपण ५. वर्णाश्रम निरूपण ६. श्राद कल्प ७. सदाचार कथन ८. मायामोह की कथा । सुजान। पुनि, प्रथम भाग चतुर्थ अंश - १. सूर्यवंश कथा २. सोमवंश कथा । प्रथम भाग पंचम अंश - १. नाना राजा लोगों की कथा २. श्री कृष्णावतार प्रश्न ३. गोकुल कथा ४. श्रीकृष्ण बाल्य लीला पूतनादि बध ५. कौमार अधासुरादि वध ६. कैशोर कंस वधादि मथुरा लीला ७. यौवन द्वारावती लीला दैत्य वध एवं विवाह ८. भूभार हरण ९. अष्टावक्र उपाख्यान । तुलसी शब्दार्थ में लिखा है । अष्टादश पुराण ब्रहम ब्रहमांड बावन सरस, ब्रहमवैवर्त मार्कण्ड अस मविष्य ये, राजस पुरान ।।१।। नारद विष्णु बराह अरु. गरुड़ पदा सुखसार । भगवत रूपी भागवत, ये सात्विक निधार ।।२।। मीन कूर्म अरु लिंग शिव, स्कंधरू अग्नि विचार । तामस सिव के अंग ए, सुनतहि मिटै खमार ।।३।। बावन ब्रहम दस दस सहस, द्वादस ब्रहमांड। ब्रह्म वैवर्त दस सहस पुनि, पचपन पवा अखण्ड ।।४।। पन्द्रह सहस सुचारि सत, मार्कण्डे सु पुरान । साढ़े चौदह भविष्य है, तेइस विष्णु बखान ।।५।। पंचविंस नारद कहत, - सूकर चौबिस जान । उनइस गरुड़ बखानिय. अठारह भगवत मान ।।६।। मत्स सु चौदह सहस है. सत्रह होह। लिंग इकादस कहत है, चौबिस रुद्र जु सोइ ।।७।। पावक पंद्रह साहस चारि सैकरा आन । स्कन्ध इक्यासी सहस अस, इकसत करत बखान ।।८।। तीन लाख अट्टानवे. सहस वेद सत आद। सब पुरान ऽश्लोक की कही व्यास उपपुराण नाम-सनतकुमारहि जान पुनि, नरसिंह अस्कन्ध । दुर्वासा आश्चर्य गनि, नारद कपिल प्रबन्ध ।।१०।। मानव अरु ब्रहमण्ड कहि, मार्गव गरुड़ बखान । माहेस्वर पुनि कालिका, सावरु सूर्य पुनार ।।११।। विष्णुपुरान परासरी पुनि, संचय देवि भागवत मिलि भये, अष्टादस सब सार्थ ।।१२।। श्री भागवत के १२वें स्कंध के १३वें अध्याय में लिखा है। ब्राह्म दशसहस्राणिपामपंचोनषष्ठि च श्रीवैष्णवत्रयोविंशच्चतुर्विंशति दशाष्टौ श्री भागवतं नारदपचविंशति मारकंडेयनववाहनतुदशपंच चतुः शतम् ।।५।। चतुर्दशभविष्यस्यात्तथापंचशतानि च दशाष्टौब्रह्मवैवर्तलिंगमेकादशैवतु ।।६।। चतुर्विंशतिवाराहमेकाशीति सहसकम स्कादशततथाचैकंवामनंदश कीर्तितम् ।।७।। कौमैसप्तदशाख्यातंमात्स्यंतत्तुचतुर्दश एकोनविंशत्सौवणे ब्रह्माडतादशैवतु ।।८।। एवंपुराणसदोहश्चतुर्लक्षउदाहृतः तत्राष्टदशसाहस्र श्री भागवतमिष्टते ।।९।। पुराणों के नामों में भी कई एक लोगों ने पृथक पृथक् लिखा है । यथा शब्द कोष में लिखा है -पुराण । (पुरा पुराना; पुर आगे जाना - अर्थात् जिसमें पुराने समय की बाते हो, अथवा जो पुराने समय में बने हो) पुराण वे ग्रंथ जिनमें से बहुतों को व्यास जी ने बनाए अथवा इकट्ठे किये । पुराण सब पद्य में लिखे हए हैं और 03 ९४१ अष्टादश पुराण की उपक्रमणिका मर्याद ।।९।। सर्वार्थ । सैवकम् ।।