पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९९५

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OMPA उपाख्यान २०५. यात्रा उपक्रम कीर्तन २०६. गोमती उत्पत्ति कथन २०७. गोमती स्नानादि फल २०८. चक्रतीर्थ माहात्म्य २०९. गोमती समुद्र संगम २१०. दुःसनकादि हृदाख्यान २११. नृगतीर्थ कथा २१२. गोप्रचार कथा २१३. गोपी द्वारका गमन २१४. गोपीसरोवर आख्यान २१५. ब्रह्मतीर्थादि कीर्तन २१६. नानाख्यान युक्त पंचनदी आख्यान २१७. शिवलिंग २१८. महातीर्थ २१९. कृष्णपूजादि कीर्तन २२०. त्रिविक्रममूर्ति २२१. दुर्वासा एवं श्रीकृष्णकथन २२२. कुशदैत्य वधोपाख्यान २२३. प्रतिमा आख्यान २२४. विशेष पूजाफल २२५. गोमती एवं' द्वारिका में तीर्थ आगमन कीर्तन २२६. कृष्ण मंदिर दर्शन फल २२७. द्वारावती अभिषेक २२८. द्वारका तीर्थ वास कथा २२९. द्वारकापुर कीर्तन । फल श्रुति - यह पुराण लिखकर हेमशूल युक्त ब्राहमण को दान करने से शिवलोक प्राप्ति होती है । चतुर्दश वामनपुराण पूर्व, उत्तर दो भाग १०००० दस सहन श्लोक । उत्तर भाग वृहत् वामन संज्ञक इस पुराण में त्रिविक्रम चरित्र बहुविध वर्णित है कूर्म कल्प का आख्यान । प्रथम पूर्व भाग - १. पुराण प्रश्न २. ब्रहमा शिरच्छेद कथा ३. कपाल मोचन आख्यान ४. दक्ष यज्ञ विनाश ५. महादेव का कालरूप धारण ६. कामदेव दहन ७. प्रहलाद नारायण का युद्ध एवं देवता असुर का युद्ध एवं सूर्य की कथा ९. भुवनकोश वर्णन १०. काम्यव्रत आख्यान ११. दुर्गा चरित्र १२. तपती चरित्र १३. कुरुक्षेत्र वर्णन १४. सरोवर माहात्म्य १५. पार्वती जन्म तपस्या एवं विवाह कथन १६. गौरी उपाख्यान १७. कौशिकी उपाख्यान १८. कुमार चरित्र १९. अंधक वध उपाख्यान २०. साध्य उपाख्यान २१. जावालि चरित्र २२. अरजा कथा २३. अंधक युद्ध एवं गण कथन २४. मस्त जन्म कथा २५. बलि चरित्र २६. लक्ष्मी चरित्र २७. त्रिविक्रम चरित्र २८. प्रहलाद की पूर्व में तीर्थ यात्रा २९. धुन्धु चरित्र ३०. प्रेतउपाख्यान ३१. नक्षत्र पुरुष आख्यान ३२. श्रीदाम चरित्र ३३. त्रिविक्रम चरित्र ३४. ब्रहमउक्तस्तव ३५. प्रहलाद एवं बलि संवाद ३६. सुतल में हरि प्रशंसा कथन । द्वितीय उत्तर भाग १. माहेश्वरी संहिता श्री कृष्ण के भक्ति का कीर्तन २. भागवती संहिता अवतार कथा ३. सौरी संहिता सूर्य महिमा कथन ४. गाणेश्वरी संहिता गणेश महिमादि कथन । यह संहिता चतुष्टय के प्रत्येक संहिता में एक सहस्रो श्लोक । फल श्रुति - यह पुराण लिखकर कार्तिकी संक्राति को घृत धेनु के साथ वेदज्ञ ब्राहमण को दान करने से नरक भोग से मुक्ति और स्वर्ग लाभ होता है एवं भोगादिक और देहांत में विष्णु के परम पद की प्राप्ति होती है। यह पुराण पाठ किंवा श्रवण करने से परमगति प्राप्त होती है। पंचदश कर्मपुराण पूर्व एवं उत्तर दो भाग १७००० सत्रह सहस श्लोक । उत्तर भाग पंचपाद में विभक्त । लक्ष्मी कल्पचरित्र । इसी कल्प में हरि ने कूर्म रूप धारण किया है एवं इंद्रद्युम्न प्रसंग से धर्मार्थ काम मोक्ष का माहात्म्य कहा है। प्रथम पूर्व भाग - १. पुराण उपक्रम कथन २. लक्ष्मी इंद्रद्युम्न संवाद ३. कूर्म ऋषिगण कथा ४. वर्णाश्रमाचार कथा ५. जगदुत्पत्ति कथा ६. काल संख्या एवं लयान्त में विभुस्तव ७. सर्गसंक्षेप कथा ८. शंकर चरित्र ९. पार्वती सहस्रनाम १०. योग निरूपण ११. भृगुवंश आख्यान १२. स्वायम्भुवकथा १३. देवतादि उत्पत्ति १४. दक्ष यज्ञ नाश १५. वृक्ष सृष्टि कथा १६. कश्यप वंश कथन १७. आत्रेय वंश कथन १८. कृष्ण चरित्र १९. माकंडेय कृष्ण संवाद २०. व्यास पांडव की कथा २१. युगधर्म कथा २२. व्यास जैमिनि की कथा २३. वाराणसी माहात्म्य २४. प्रयाग माहात्म्य २५. त्रिलोक वर्णन २६. वेदशाखा निरूपण । द्वितीय उत्तर भाग -१. ऐश्वरी गीता २. नानाधर्म प्रकाशिका व्यास गीता ३. नानाविध तीर्थ का पृथक माहात्म्य ४. ब्राहमी संहिता ५. भागवती संहिता । इसमें सकल वर्णन से पृथक् वृत्ति निरूपण है। उत्तर भाग में प्रथम पाद में ब्राहमण की सदाचारात्मिका व्यवस्थिति कथन । द्वितीय पाद में क्षत्रिय की वृत्ति निरूपण । तृतीय पाद में वैश्य जाति की चार प्रकार की वृत्ति निरूपण । चतुर्थ पाद में शूद्र की वृत्ति

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अष्टादश पुराण की उपक्रमणिका ९५१