पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९९७

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FE - को वर्णन ३९. सामुद्रिक स्वर ज्ञान ४०. नवरल परीक्षा ४१. तीर्थ माहात्म्य ४२. गया माहात्म्य ४३. मनवन्तर पृथक पृथक आख्यान ४४. पित्राख्यान ४५. वर्णधर्म ४६. द्रव्यशुद्धि ४७. द्रव्य समर्पण ४८.श्राद्धकथा ४९, विनायक पूजा ५०. ग्रहयज्ञ ५१. आश्रम कथा ५२. मननाख्यान एवं प्रशौच ५३. नीतिसार ५४. व्रतोक्ति ५५. सूर्य वंश ५६. सोमवंश ५७. हरि अवतार कथन ५८. रामायण ५९. हरिवंश ६०. भारताख्यान ६१. आयुर्वेद ६२. निदान ६३. चिकित्सा ६४. द्रव्यगुण ६५. रोगन विष्णु कवच ६६. गरुड़ कवच ६७. त्रिपुर आख्यान ६८. प्रश्न चूड़ामणि ६९. अश्वायुर्वेद ७०. ओषधीनाम कथन ७१. व्याकरण शास्त्र ७२. छंदशास्त्र ७३. सदाचार ७४. स्नान विधि ७५ वैश्वदेव तर्पण ७६. संध्या ७७. पार्वण कर्म ७८. नित्य श्राद्ध ७९. सपिंड श्राद ८०. धर्मसार निष्कृति ८१. प्रतिसक्रम ८२. युगधर्म कृत फल ८३. योगशास्त्र ८४. विष्णु भक्ति ८५. भगवत्प्रणाम फल ८६. वैष्णव माहात्म्य ८७. नरसिंह स्तव ८८. ज्ञानामृत ८९. गुहयाष्टक स्तव ९०. विष्णु अर्चना ९१. वेदांत सार सांख्य और सिद्धांत शास्त्र ९२. ब्रह्मज्ञान ९३. आत्म ज्ञान ९४. गीता सार एवं फल कथन । द्वितीय उत्तर खंड प्रेत कल्प कथा -१. धर्म प्रकटित करण २. पूर्व योनि गति कारण ३. दानादिफल ४. औदं दैहिक क्रिया ५. यमलोक मार्ग वर्णन ६. षोडश श्राद फल ७. यममार्ग से निष्कृति कथन ८. धर्मराज वैभव ९. प्रत पीड़ा निर्णय १०. प्रेत चिन्ह निरूपण ११. प्रेत चरित्र १२. प्रेत कारण १३. प्रत कृत्य विचार १४. सपिडीकरण १५. प्रेतत्व मोक्षण आख्यान १६. विमुक्ति कारण दान १७. प्रेत आवश्यक दान १८. शारीरिक विनिद्देश १९. यमलोक वर्णन २०. प्रेतत्व उतार कथन २१. कर्म कर्ता निर्णय २२. मृत्यु की पूर्व क्रिया कथन एवं पश्चात कर्म निरूपण २३. षोडश श्राद्ध कथन २४. स्वर्ग प्राप्ति क्रिया २५. सूतक संख्या २६. नारायण बलि कर्म २७. वृषोत्सर्ग माहात्म्य २८. निषिद्ध त्याग २९. अपमृत्यु क्रिया ३०. मनुष्य कर्म विपाक ३१. कृत्याकृत्य विचार ३२. मुक्ति कारण विष्णु ध्यान ३३. स्वर्ग गमन विहित आख्यान ३४. स्वर्ग सुख निरूपण ३५. भूलोक वर्णन ३६. सप्तलोक वर्णन ३७. पंच उर्दलोक कथन ३८. ब्रहमांड स्थिति कीर्तन ३९. ब्रह्मांड अनेक चरित्र कथन ४०. ब्रहमजीव निरूपण ४१. आत्यन्तिक लय कथन ४२. फल श्रुति निरूपण । फल श्रुति 1- यह पुराण पाठ करने किंवा श्रवण करने से पाप शमन होता है और लिखकर विष्णु संक्रांति को सुवर्ण हंस द्वय युक्त ब्राहमण को दान करने से स्वर्ग लाभ होता है। अष्टादश ब्रह्मांड पुराण ४ पाद तीन भाग १२००० बारह सहस श्लोक । प्रथम भाग में -१. प्रक्रिया पाद २. अनुषंग पाद ३. उपोद्घात पाद मध्य भाग ४. उप संहार पाद शेष भाग । इस पुराण में भविष्य कल्प की कथा है । प्रथम भाग प्रक्रिया पाद आरंभ - १. कृत्य समुदेश २. नैमिषाख्यान ३. हिरण्य गर्भोत्पत्ति ४. लोक कल्पना कथा। द्वितीय अनुषंग पाद --१. कल्पमन्वंतराख्यान कथा २. लोक ज्ञान कथन ३. मानसिक सृष्टि विवरण ४. रुद्र प्रभाव विवरण ५. महादेव विभूति वर्णन ६. ऋषि सर्ग वर्णन ७. अग्नि उत्पत्ति विवरण ८. काल सद्भाव वर्णन ९. प्रियव्रत समूह उद्देश १०. पृथिवी आयाम एवं विस्तार वर्णन ११. भारतवर्ष वर्णन १२. अन्य वर्ष वर्णन १३. जंब्वादि सप्तद्वीप वर्णन १४. अध: एवं उर्द लोक विवरण १५. ग्रहाचार १६. आदित्य व्यूह विवरण १७. देवग्रह वर्णन १८. नीलकंठाख्यान १९. महादेव वैभव २०. अमावस्या कथा २१. युग तत्व निरूपण २२. यज्ञ प्रवर्तन २३. मध्य एवं अन्त्य युग की क्रिया एवं सत्ययुग की प्रजा का लक्षण २४. ऋषि प्रवर वर्णन २५. वेद आख्यान २६. स्वायम्भुव निरूपण २७. शेष मन्वन्तराख्यान २८. पृथिवी दोहन । मध्यभाग उपोद्घात पाद १. सप्तऋषि कथा २. प्रजापति उपाख्यान ३. देवादि उद्भव ४. जय एवं क्रीड़ा ५. मरुत उत्पत्ति कीर्तन ६. काश्यप विवरण ७. ऋषि वंश निरूपण ८. पितृकल्प कथा ९. श्राद्ध कल्प कथा १०. वैवस्वतोत्पत्ति ११. वैवस्वत सृष्टि विवरण १२. मनुपुत्र निर्णय १३. गंधर्व निरूपण १४. इक्ष्वाकुवंश विवरण १५. अत्रिवंश विवरण १६. अमावसु अर्चन १७. रजि चरित्र १८. ययाति चरित्र १९. यदुवंश निरूपण २०. कार्तवीर्य चरित्र २१. जमदग्नि विवरण २२. वृष्णिवंश विषय २३. सागर उपाख्यान २४. भार्गव चरित्र २५. गय वध २६. समर विवरण २७. पुनरि भार्गव विषय २८. देवासुर युद्ध में कृष्ण का आविर्भाव वर्णन २९. शुक्र कर्तृक इलस्तव ३०. विष्णु माहात्म्य विवरण ३१. इलिवंश निरूपण ३२. कलियग अष्टादश पुराण की उपक्रमणिका ९५३