पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१०

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दूसरा एक कारण इनके विरोध का यह हुआ कि राजामाहब ने फारसी आदि मिश्रित खिचडी हिन्दी की सृष्टि करके उसे चलाना चाहा। यह भारतेन्दु के ही जौहर थे जो हिन्दी को “नयी चाल मे ढाल" कर केवल एक पुरानी सशक्त साहित्य-परपरा को ही जीवित नही रखा वरन् खडी बोली को भारत की अन्य भाषाओ के सन्निकट भी ला दिया। सच पूछा जाय तो हिन्दी तो भारतेन्दु का जीवन्त स्मारक है। सही भाषा-नीति अपनाने के कारण ही करोडो हिन्दी-भाषियो ने ब्रिटिश सरकार के बनाये हुए 'सितारेहिद' के मुकाबले मे हरिश्चन्द्र को 'भारतेन्दु' मान कर प्रेम और आदर सहित अपने दिलो मे जगह दी, और आज भी दे रहे है। यहा पर यह बात भी ध्यान देने लायक है कि हिंदी के इस युगानुकूल और उचित आन्दोलन का नेतृत्व करते हुए उन्होने उसे साम्प्रदायिक रुख कदापि न अपनाने दिया। वह उर्दू के दुश्मन न थे, उर्दू में अखबार निकालने का विचार भी उनके मन में था और उसकी घोषणा भी वे कर चुके थे। अपने घर मे कविगोष्ठियो के अलावा वे मुशायरे भी कराते थे। 'रसा' उपनाम से गज़लें भी कहते थे। भाषा के सबध में भारतेन्दु ने सही नीति निर्धारित करके न केवल अपने समय मे बल्कि भविष्य के लिए भी हिन्दी को एक सुनिश्चित दिशा प्रदान कर दी। ___ हिन्दी भाषा को आधुनिक रूप देने में ही नही वरन हिंदी साहित्य को भी आधुनिक काल की आवश्यकताओं के अनुकूल ढालने में भी उनके प्रयत्न चिरस्मरणीय रहेंगे। उन्होने नाटक, कविता, निबन्ध आदि विधामो को तो बढावा दिया ही, उपन्यास लेखन की दिशा मे भी गति दी, "कुछ आप बीती, कुछ जग बीती" इस बात का प्रमाण है। काव्यशास्त्र के अतिरिक्त उन्हें इतिहास, पुरातत्व और सामाजिक समस्यानो के प्रति भी गहरी रुचि थी। उनकी साहित्य-रचना कोरी सुन्दरता के लिए नही, बल्कि पूरे समाज को सुन्दर बनाने के लिए होती थी ।