पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१००

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(८२) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र जो भिन्नता कहीं कहीं पाई जाती है वह स्वाभाविक है । 'चन्द्रावली नाटिका' मे अपने तरङ्ग के अनुसार कहीं खडी बोली और कहीं व्रजभाषा लिखकर कवियो की स्वेच्छाचरिता प्रत्यक्ष कर दिया है। इसको पूरी पूरी व्रजभाषा मे इनके मित्र राव श्रीकृष्णदेवशरण सिह (राजा भरतपुर) ने किया था और संस्कृत अनुवाद पण्डित गोपाल शास्त्री उपासनी ने । इस नाटिका के अभिनय की इनकी बडी इच्छा थी, परन्तु वह जी ही मे रह गई। एक बेर लिखने के पीछे उसे ये पुनार लिखते कभी नहीं थे और प्राय प्रूफ के अतिरिक्त पुनरावलोकन भी नहीं करते थे, तथाच प्रूफ में भी प्राय कापी से कम मिलाते थे, योही प्रूफ पढ जाते थे। इन कारणो से भी कहीं कहीं कुछ भ्रम हो जाना सम्भव है। अस्तु, फिर प्रकृत विषय की ओर चलिए। धर्म सम्बन्धीय ग्रन्थो की ओर तो इनकी रुचि बचपन ही से थी, 'कार्तिक कम विधि', 'कातिक नैमित्तिक कर्म बिधि', 'मागशीष महिमा' "वैशाख माहात्म्य' 'पुरुषोत्तम मास विधान', 'भक्ति सूत्र वजयन्ती', 'तदीय सवस्व' प्रादि ग्रन्थ प्रमाण है। धर्म के साथ ऐतिहासिक खोज पर भी ध्यान था ('वैष्णवसर्वस्व', 'वल्लभीय सर्वस्व' प्रादि)। इस इच्छा से कि नाभा जी के 'भक्तमाल' में जिन भक्तो का नाम छूटा है या जो उनके पीछे हुए हैं उनके चरित्र संग्रह हो जायँ, 'उत्तराध भक्तमाल' बनाया। धर्म के विषय में उनके कसे विचार थे इसका कुछ पता 'वैष्णवता और भारतवष' से लग सकता है। धम विषयक जानकारी इनकी अगाध थी। एक बेर स्वय कहते थे कि इस विषय पर यदि कोई सुनने वाला उपयुक्त पान मिले तो हम भारतीय धर्म के रहस्यो पर दो वर्ष तक अनवरत व्याख्यान दे सकते हैं। सस्कृत तथा भाषा के कवियो के जीवन चरित्र भी इन्हें बहुत विदित थे। सब धर्मों की नामावली तथा उनके शाखा प्रशाखा का वृक्ष, तथा सब दर्शनो और सब सम्प्रदायो के ब्रह्म, ईश्वर, मोक्ष परलोक आदि मुख्य मुख्य विषयो पर मतामत का नशा वह बनाते थे जो अधूरा अप्रकाशित रह गया। इस थोडे ही लिखे ग्रन्थ से उन की जानकारी और विद्वत्ता को पूर्ण परिचय मिलता है। यह सब अधूरे और अप्रकाशित ग्रन्थ 'खग-विलासप्रेस' सेवन कर रहे हैं, सम्भव है कि किसी समय रसिक समाज का कौतूहल निवारण कर सकेंगे। इतिहास और पुरातत्वा- नुसन्धान की ओर इनका पूरा पूरा ध्यान रहा। जिस विषय को लिखा पूरी,खोज और पूरे परिश्रम के साथ लिखा। 'काश्मीर कुसुम', 'बादशाह दर्पण', 'कवियो के जीवन चरित्रादि इस के प्रमाण हैं। भाषारसिक डाक्तर ग्रिअर्सन ने न के सगुण पर मोहित होकर इन्हें स्पष्ट ही "The only critic of Nor-