पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१०१

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न (८३) thern India" लिखा है। इतिहास की ओर इनका इतना अधिक झुकाव था कि नाटक, कविता, तथा धर्म सम्बन्धी ग्रन्यादि मे जहाँ देखिएगा कुछ न कुछ इसका लपेट अवश्य पाइएगा। कविता के विषय मे हम ऊपर कई स्थलो पर बहुत कुछ लिख चुके हैं, यहाँ केवल इतना ही लिखना चाहते हैं कि शृङ्गार-प्रधान भगवल्लीला के अतिरिक्त इनका उरमान जातीय गीत की ओर अधिक था। यदि विचार कर देखा जाय तो क्या धर्म सम्बन्धी, क्या राजभक्ति (राजनैतिक), क्या नाटक क्या स्फुट प्राय सभी चाल की कविता मे जातीयता का प्रश वर्तमान मिलेगा। हृदय का जोश उबला पडता है, विषाद की रेखा अलक्षित भाव से वर्त- मान है, नित्य के ग्राम्य गीत (कजली, होली, आदि) मे भी जातीय सङ्गीत प्रचलित करना चाहते थे। "काहे तू चौका लगाए जयचंदवा", "टूटे सोमनाथ के मन्दिर केहू लागे न गुहार", "भारत मे मची है होरी", "जुरि पाए फाक्ने मस्त होरी होय रही", आदि प्रमाण हैं। इस विषय मे एक सूचना भी दी थी कि ऐसे जतीय सङ्गीत लोग बनावें, हम इनका सग्रह छापैगे। उर्द की स्फुट कविता के अतिरिक्त हास्यमय "कानून ताजीरात शौहर" बनाया, बँगला मे स्फुट कविता के अतिरिक्त "विनो- दिनी" नाम की पुस्तिका बनाई थी, सस्कृत मे "श्रीसीताबल्लभ स्तोत्र" आदि बनाए, अग्रेजी मे एज्यूकेशन कमीशन का साक्षी ग्रन्थ रूप मे लिखा (स्फुट कविता मेगजीन मे छपी हैं) भक्तसर्वस्व गुजराती अक्षरों मे छपा, गुजराती कविता इनकी बनाई "मानसोपायन" में छपी है, पञ्जाबी कविता "प्रेमतरङ्ग" मे छपी हैं, महा- राष्ट्री में "प्रेमयोगिनी" का एक अङ्क ही लिखा है, एक वष कार्तिकस्नान शरीर की रुग्नता के कारण नहीं कर सके तो नित्य कुछ कविता बनाया उसका नाम 'कार्तिक- स्नान" रक्खा, राजनैतिक, सामाजिक, तथा स्फुट विषयो पर ग्रन्थ और लेख जो कुछ इन्हो ने लिखे थे और उन पर समय समय पर जो कुछ प्रान्दोलन होता रहा या उनका जो प्रभाव हुमा उनका वर्णन इस छोटे लेख मे होना असम्भव है। हम तो इस विषय मे इतना भी लिखना नहीं चाहते थे, किन्तु हमारे कई मित्रो ने आग्रह करके लिखवाया। वास्तव में यह विषय ऐसा है कि उनके प्रत्येक ग्रन्थो का पृथक पथक वर्णन किया जाय कि वे कब बने, क्यो बने, कैसे बने, क्या उनका प्रभाव हुआ, कितने रूप उनके बदले, कितने सस्करण हुए और उनमे क्या परिवर्तन हुआ और अब किस रूप में हैं तब पाठको को पूरा आनन्द पा सकता है। अस्तु हमने मित्रों के आग्रह से प्राभास मात्र दे दिया।