पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१०४

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(८६) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र इस देश के लोगो ही ने स्वीकार किया, वरञ्च योरप के लोग भी बराबर इन्हें भारतेन्दु लिखने लगे। विलायत के विद्वान इन्हें मुक्तकठ से Poet Laureate of Northern India (उत्तरीय भारत के राजकवि) मानते और लिखते थे। एज्यूकेशन कमीशन के साक्षी नियुक्त ए। लार्ड रिपन के समय मे राजा शिवप्रसाद से बिगडने पर हजारो हस्ताक्षर से गवर्मेन्ट की सेवा मे मेमोरियल गया था कि इनको लेजिस्लेटिव काउन्सिल का मेम्बर चुनना चाहिए । बलिया निवासियो ने इनके बनाए 'सत्यहरिश्चन्द्र' नाटक का अभिनय किया था, उस समय इन्हें भी बुलाया था। बलिया में इनका बडा सतकार हुअा था, इनका स्वागत धूमधाम से किया गया था, ऐड्रेस दिया गया था। इनके इस सम्मान मे स्वय जिलाधीश राबर्ट स साहब भी सम्मिलित थे । इनकी बीमारियो पर कितने ही स्थानो पर प्राथनाएँ की गई हैं, प्रारोग्य होने पर कितने ही जलसे हुए हैं, कितने 'कसीदे' बने हैं और ऐसी ही कितनी ही बातें हैं। - - . - - - नए चाल के पत्र हिन्दी मे कितने ही चाल के पन्न, कितनी ही चाल की नई बातें इन्होने चलाई। प्रतिवर्ष एक छोटी सी सादी नोट बुक छपवाकर अपने मित्रो मे बांटते थे जिस पर वर्ष को अग्रेजी जन्त्री रहती थी और "हरिश्चन्द्र को न भूलिए", "Forget me not' छपा रहता, तथा और भी तरह तरह के प्रेम तथा उपदेश वाक्य छपे रहते थे। जब से इन्होने १०० वर्ष की जन्त्री (वर्ष मालिका) छपवा कर प्रकाशित की तब से इसका छपना बन्द हुआ। इस नोट बुक की कमिश्नर कारमाइकल साहब ने बडी सराहना की है। पत्रो के लिये प्रत्येक बार के अनुसार जुदा जुदा रङ्ग के कागज पर जुदा जुदा शोषक छापकर काम मे लाते थे, यथा- रविवार को गुलाबी कागज पर-- ___"भक्त कमल' दिवाकराय नम" "मित्र पन बिनु हिय लहत छिनहू नहिं विश्राम । प्रफुलित होत न कमल जिमि बिनु रवि उदय ललाम ॥"