पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१०६

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(८८) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र इनके अतिरिक्त और भी प्रेम तथा उपदेश वाक्य छपे हुए काराज़ो पर पत्र लिखते थे। इनके सिद्धान्त वाक्य अर्थात् मोटो निम्नलिखित थे-- (१) “यतो धमस्तत कृष्णो यत कृष्णस्ततो जय" (२) "भक्त्या त्वनन्यया लभ्यो हरिरन्यद्विडम्बनम्" (३) “The Love is heaven and heaven is love' इनके सिद्धान्त चिन्ह अर्थात् मोनोग्नाम भी थे। लिफाफो के ऊपर पत्र के प्राशय को प्रगट करने वाले वाक्यो के वेफर' छपवा रक्खे थे, जिन्हें यथोचित साट देते थे। इन पर "उत्तर शीघ्र", "जरूरी", "प्रेम" आदि वाक्य छपे थे। ऐसी कितनी ही तबीयतदारी की बातें रात दिन हुआ करती थीं। स्वभाव स्वभाव इनका अत्यन्त कोमल था, किसी का दुख देख न सकते थे। सदा प्रसन्न रहते थे। क्रोध कभी न करते। परन्तु जो कभी क्रोध या जाता तो उसका ठिकाना भी न था। जिन महाराज काशिराज का इन पर इतना स्नेह था और जिन पर ये पूर्ण भक्ति रखते थे, तथाच जिनसे इन्हें बहुत कुछ प्रार्थिक सहायता मिलती थी, उनसे एक बात पर बिगड गए और फिर यावज्जीवन उनके पास न गए महारानी विक्टोरिया के छोटे बेटे ड्यूक आफ आलबेनी की अकाल मृत्यु पर इन्हो ने शोक समाज करना चाहा । साहब मैजिस्ट्रेट से टाउनहाल मांगा, उन्हो ने प्राज्ञा दी, सभा की सूचना छपकर बँट गई, परन्तु दिन के दिन राजा शिवप्रसाद ने साहब मैजिस्ट्रेट से न जाने क्या कहा सुना कि उन्हो ने सभा रोक दी और टाउन १ अंग्रेज़ी एच (H) नाम का पहिला अक्षर, एच मे जो चारपाई है वह चार खम्भे अर्थात् चौखम्भा एच के ऊपर त्रिशूल अर्थात् काशी, श्री हरि अर्थात् भग- वन् नाम भी और श्रीहरि + चन्द्र श्री हरिश्चन्द्र, चन्द्रमा के नीचे तारा है वही फारसी का है अर्थात् इनके नाम का पहिला अक्षर ।