पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/११२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (६५) शोक प्रकाश भारतवष के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक हाहाकार मच गया। काशी का तो कहना ही क्या था, पेशावर से लेकर नेपाल तक और कलकत्ते से लेकर बम्बई तक सैकडो ही स्थानो मे शोक समाज हुए। शोक प्रकाशक तार और पत्रो का ढेर लग गया, कितने ही समाचार पत्रो की ओर से अनियत पत्र प्रकाशित हुए, कितने ही शोकपत्र जन साधारण की ओर से वितरित हुए। हिन्दी समाचार पत्रो का तो कहना ही क्या था, महीनो तक कितनो ही ने शोक चिन्ह धारण किया, कितने ही शोक लेख, कितनी ही शोक कविता, कितनी ही शोक समस्या छपी, कितने ही चित्र छपे कितने ही जीवनचरित्र छपे । अंग्रेजी, उर्दू, बंगला, गुजराती, महाराष्ट्री के कोई पत्र नहीं थे जिन्होने हार्दिक शोक प्रकाश न किया हो । चारो ओर कितने ही दिनो तक शोक ही शोक छाया रहा। भारतवष मे बहुतेरे बड़े बडे लोग मरे और बहुत कुछ लोगो ने किया, परतु ऐसा हार्दिक शोक आज तक किसी के लिये प्रकाशित नहीं हुआ। शत्रु भी इनकी मृत्यु पर अश्रुवषण करते थे, मित्रो की कौन कहे। राजा शिवप्रसाद से प्राजन्म इन से झगडा चला, परन्तु जिस समय वह मातमपुर्सी को आए थे ऑखो मे आँसू भरे हुए थे, और कहते थे कि "हाय । हमारा मुकाबिला करने वाला उठ गया ।" पडितलोग यह कहकर रोते थे कि क्या फिर वैश्यकुल में कोई ऐसा जन्मगा जिससे हमलोग धमशास्त्र की व्यवस्था पर सलाह लेने जॉयगे । निदान इनका शोक अकथनीय था। इस विषय मे लाहौर के "मित्र बिलास" ने जो कुछ लिखा था उसका कुछ अश हम प्रकाशित किए देते हैं, उसीसे उस समय के शोक का पता लग जायगा- ___हाय हरिश्चन्द्र ! तू हमलोगो को छोड जायगा इस बात का तो किसी को ध्यान मात्र भी न था, और अभी तक भी तेरा नाम स्मरण करके यह निश्चय नहीं होता है कि कलम दावात लिए, 'बस्ता' सामने धरे उसमे से काराज रूपी बिखडे रत्नो को हास्यमुख के साथ एक लडी मे पिरो रहा है और सोच रहा है कि किस प्राशावान की झोली इससे भरूं । 'गोदडी मे लाल' सुना करते थे, परन्तु देखे तेरे ही पास । हा। अब कौन उनको परख सकेगा और कौन उनकी माला बनावैगा? "प्यारे हरिश्चन्द्र ! काशी मे, जहाँ और बडे बडे तीथ हैं, वहां तू भी एक