पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१२७

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होता, फिर पाप को इतनी जल्दी क्या थी जो इसका हाथ ऐसी अधूरी अवस्था मे छोडा हे परमेश्वर, तूने आज क्या किया, तेरे यहाँ कमी क्या थी जो तूने हमारी महानिधि छीन ली ० जो कहो कि वह तुम्हारे भक्त थे तो क्या न्याय यही है कि अपने सुख के लिये भक्त के भक्तो को दुख दो ० अरे मौत निगोडी, तुझे मौत भी नाई जो मेरे प्यारे का प्राण छोडती ० अरे दुदैव क्या तेरा पराक्रम यही था जो हतभाग्य भारत को यह दिन दिखलाया ० हाय | आज हमारे भारतवष का सौभाग्यसूर्य अस्त हो गया, काशी का मानस्तथ टूट गया और हिन्दुओ का वन जाता रहा ० यह एक ऐसा आकस्मिक वज्रपात हुआ कि जिस के आघात से सब का हृदय चूण हो गया • हा | अब ऐसा कौन है जो अपने बन्धुनो को अपने देश की भलाई करने की राह बतलावैगा और तन मन धन से उनमे समति और अच्छे उपदेशो के फैलाने का यत्न करैगा ० अभागिनी हिन्दी के भण्डार को अपने उत्तमोत्तम लेख द्वारा कौन पुष्ट करेगा और साधारण लोगो में विद्या की रुचि बढाने के लिये नाना प्रकार के सामयिक लेख लिख कर सब का उत्साह कौन बढावेगा ० अपनी सुधामयी वाणी से हम लोगो की आवेलि कौन बढावैगा और हा। काव्यामत पान करा के हमारी प्रात्मा को कौन तुष्ट करेगा. मेरे प्राणप्यारे । अवसर पडने पर हमारे पायधम की रक्षा करने के लिये कौन मागे होगा और दीनोद्धार की श्रद्धा किसको होगी • यो तो प्राय जाति को अब कोई सकष्ट उपस्थित होता था तो वे तुम्हारे समीप दौडे जाते थे पर अब किसकी शरण जायेगे • शोक का विषय है कि तुमने इनमे से एक पर भी ध्यान न दिया और हम लोगो को निरवलम्ब छोड गये प्रियतम हरिश्चन्द्र । आज तुम्हारे न रहने ही से काशी में उदासी छा रही है और सब लोगो का अन्त करण परम दुखित हो रहा हे ० तुम को वह मोहन मत्र याद था कि जिस से सारे ससार को अपने वश में कर लिया था ० पर हा| आज एक तुम्हारे चले जाने से सारा भारतवर्ष ही नहीं, किन्तु यूरोप अमेरिका इत्यादि के लोग भी शोकनरत होगे यद्यपि तुम कहने को इस ससार मे नही हो, परन्तु तुम्हारी वह अक्षय कीति है कि जो इस संसार मे उस समय तक बनी रहेगी कि जबलो हिन्दी भाषा और नागरी अक्षरो का लोप होगा • प्यारे | तुम तो वहाँ भी ऐसे ही आदर को प्राप्त होग पर बिला मोत हम लोग मारे गये ० अस्तु परमेश्वर की जो इच्छा आप की आत्मा को सुख तथा अखण्ड स्वगनाम हो, पर देखना अपने दोन मित्र तथा गरीब भारतवष को