पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१३०

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(0) जिसके छात्र प्राज दिन एम० ए० बी० ए० तथा बडी २ तनखाह के नौकर हैं ।लोगो के सस्कार सुधारने तथा हिन्दी की उन्नति के लिये हिदी डिबेटिंग क्लब,अनाथरक्षिणी तदीय समाज, काव्य समाज इत्यादि सभाएँ सस्थापित की और उनके सभापति रहे, भारतवष के प्राय सब प्रतिष्ठित समाज तथा सभाओ मे से किसी के प्रेसीडेन्ट, सेक्रिटरी और किसी के मेम्बर रहे लोगो के उपकाराथ अनेकबार देश देशान्तरो मे व्याख्यान दिये। उनको वक्तृता सरस और सारग्राहिणीहोती थी। उनके लेख तथा वक्तृत्व देशगौरव झलकता था। विद्या का सम्मान,जैसा बाबू साहिब करते थे वसा करना आजकल कठिन है, ऐसा कोई भी विद्वानन होगा जिसने इनसे आदर सत्कार न पाया हो । यहाँ के पण्डितो ने जो अपना २हस्ताक्षर करके बाबू साहिब को प्रशसापन दिया था उसमे उन लोगो ने स्पष्टलिखा है कि-


सब सज्जन के मान को कारन इक हरिचन्द ।

जिमि सुभाव दिन रैन के कारन नित हरिचन्द ।।

बाबू साहिब दानियो मे कण थे, इतना ही कहना बहुत है। उनसे हजारोमनुष्य का कल्याण होता रहा । विद्योन्नति के लिये भी उन्हो ने बहुत व्यय किया।५०० रु० तो उन्होने प० परमानन्द जी की शतसई की संस्कृत टीका का दियाथा और इसी प्रकार सेकालिज, वो स्कूलो मे उचित पारितोषिक बाटे है।जब २ बगाल, बम्बई, वो मदरास मे स्त्रियाँ परिक्षोत्तीण हुई है तब २ बाबू साहिब ने उनके उत्साह बढाने के लिये बनारसी साडिया भेजी थीं। जिनमे से कई एकको श्रीमती लेडी रिपन ने प्रसन्नता पूर्वक अपने हाथ से बाटा था। बाबू साहिबने देशोपकार के लिये नेशनल फड होमियोपैथिक डिस्पेंसरी, गुजरात वो जौनपुररिलीफ फण्ड, सेलज होम, प्रिंस पाव वेल्स हास्पिटल और लैबेरी इत्यादि कीसहायता मे समय समय पर चन्दा दिये है। गरीब दुखियो की बराबर सहायताकरते रहे।

गुणग्नाहक भी एक ही थे, गुणियो के गुण से प्रसन्न होकर उनको यथेष्ट द्रव्यदेते थे, तात्पर्य यह कि जहा तक बना दिया देने से हाथ नहीं रोका। देशहितैषियो मे पहिले इन्हीं के नाम पर अगुली पडती है क्योकि यह वह हितैषी थे कि जिन्होने अपने देशगौरव के स्थापित रखने के लिये अपना धन, मान,प्रतिष्ठा एक अोर रख दी थी और सदा उसके सुधरने का उपाय सोचते रहे।