पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१३१

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उनको अपने देशवासियो पर कितनी प्रीति थी यह बात उनके भारतजननी,वो भारतदुर्दशा इत्यादि नन्थो के पढने ही से विदित हो सकती है। उनके लेखो सेउनकी हितैषिता और देश का सच्चा प्रेम झलकता था।

यद्यपि बहुत लोगो ने उनको गवर्मेन्ट का डिसलायल (अशुभचिन्तक) मानरक्खा था, पर यह उनका भ्रम था, हम मुक्तकण्ठ से कह सकते है कि वह परमराजभक्त थे। यदि ऐसा न होता तो उन्हें क्या पडी थी कि जब प्रिंस आव वेल्स। आये थे तो वह बडा उत्सव और अनेक भाषा के छन्दो मे बना कर स्वागत ग्रन्थ(मानसोपायन) उनके अपण करते। उयूक प्राव एडिम्बरा जिस समय यहापधारे थे बाबू साहिब ने उनके साथ उस समय वह राजभक्ति प्रकट की जिससेड्यूक उन पर ऐसे प्रसन्न हुए कि जब तक काशी में रहे उन पर विशेष स्नेह रक्खा सुमनोन्जलि उनके अपण किया था जिसके प्रति अक्षर से अनुराग टपकता है। महाराणी की प्रशसा में मनोनुकूल माला बनाई। मिस्त्र युद्ध के विजय परप्रकाश्य सभा की, वो विजयिनीविजय बैजयती बनाकर पूरण अनुराग सहित भक्तिप्रकाशित की। महाराणी के बचने पर सन ८२ मे चौकाघाट के बगीचे मे भारीउत्सव किया था और महाराणी के जन्म दिवस तथा राजराजेश्वरी की उपाधिलेने के दिन प्राय बाबू साहिब उत्सव करते रहे। ड्यूफ प्राव् अराबनी कीअकाल मृत्यु पर सभा कर के महाशोक किया था। जब २ देशहितषी लाड रिपन प्राये उन को स्वागत कविता देकर आनन्दित हुए। सन् ७२ मे म्यो मेमोरियलसिरीज मे १५०० रु० दिये। यह सब लायल्टी नहीं तो क्या है ?

बाबू साहिब भारतवष के एडयूकेशन कमीशन (विद्या सभा) के मध्यतो हुए ही थे परन्तु इन का गुण वह था कि वलायत में जो ने निरा एथम (जातीयगीत) के भारत की सब भाषामो में अनुवाद करने के लिये महारानी की ओर सेएक कमेटी हुई थी उसके मेम्बर भी थे, और उनके सेक्रेटरी ने तो पत्र लिखा थाउसमे उसने बाबू साहिब की प्रशसा लिख कर स्पष्ट लिखा था कि मुझको विश्वास है कि आप की कविता सबसे उत्तम होगी और अन्त में ऐसा ही हुमा क्यो नहींजब को भारती जिह्वा पर थी। सच पूँछिए तो कविता का महत्व उन्हीं के साथथा। बाबू साहिब की विद्वत्ता और बहज्ञता की प्रशसा केवल भारतीय पत्रो ने नहींकी वरन्च विलायत के प्रसिद्ध पत्र प्रोवरलेण्ड, इण्डियन और होम मेल्स इत्यादिक अनेक पत्रो ने की है। उनकी बहुदर्शिता के विषय मे एशियाटिक सोसाइटी के