पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१३२

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प्रधान डाक्टर राजेन्द्रलाल मित्र, एम० ए० रिग, श्रीमान पण्डितवर ईश्वरचन्द्रविद्यासागर प्रभति महाशयो ने अपने २ ग्रथो मे बडी प्रशसा की है। श्रीयुतविद्यासागर जी ने अपने अभिज्ञान शाकु तल को भूमिका मे बाब् साहिब को परमप्रमायिक, देशबन्धु धार्मिक, और सुहृद इत्यादि कर के बहुत कुछ लिखा है।बाबू साहिब अजातशत्रु थे इसमे लेश मात्र भी सन्देह नहीं और उनका शील ऐसाअपूर्व था कि साधारणो की क्या कथा भारतवर्ष के प्रधान २ राजे, महाराजे,नवाब और शहजादे इन से मित्रता का बर्ताव बरतते थे और अमेरिका वो यूरोप केसहृदय प्रधान लोग भी इन पर पूरा स्नेह रखते थे। हा | जिस समय ये लोगयह अनथकारी घोर सम्बाद सुनेंगे उनको कितना कष्ट होगा।

बाबू साहिब को अपने देश के कल्याण का सदा ध्यान रहा करता था ।उन्होने गोबध उठा देने के लिये दिल्ली दरबार के समय ६०००० हस्ताक्षर करा केलाड लिटन के पास भेजा था। हिन्दी के लिये सदा जोर देते गये और अपनीएज्यूकेशन कमीशन की साक्षी मे यहा तक जोर दिया कि लोग फडक उठते हैं।अपने लेख तथा काव्य से लोगो को उन्नति के अखाडे मे पाने के लिये सदा यत्नवानरहे। सावारण की ममता इनमे इतनी थी कि माधोराव के धरहरे पर लोहे केछड लगवा दिये कि जिससे गिरने का भय छूट गया। इनकमटक्स के समय जब लाटसाहिब यहा आये थे तो दीपदान की वेला दो नावो पर एक पर और दूसरीपर स्वागत स्वागत धन्य प्रभु श्री सर विलियम म्योर । टेक्स छुडाव्हु सबन को विनय करत कर जोर ॥ लिखा था इसके उपरान्त टिकस उठ गया लोग कहते हैंकि इसी से उठा। चाहे जो हो इसमे सन्देह नहीं कि वह अन्त तक देश के लियेहाय २ करते रहे।

सन् १९८० ई० के २० सितम्बर के सारसुधानिधि पत्र मे हमने बाबू साहिब को भारतेन्दु की पदवी देने के लिये एक प्रस्ताव छपवाया था और उसकेछप जाने पर भारत के हिन्दी समाचारपत्रो ने उसपर अपनी सम्मति प्रकटकी और सब पत्र के सम्पादक तथा गुणग्राही विद्वान् लोगो ने मिल कर उनकीभारतेन्दु की पदवी दी, तबसे वह मारतेन्दु लिखे जाते थे।

बाबू साहिब का धम्म वैष्णव था। श्रीवल्लभीय वह धम के बडे पक्के थे,पर आडम्बर से दूर रहते थे। उनके सिद्धान्त मे परम धर्म भगवत्प्रेम था।'मत वा धम्म विश्वासमूलक मानते थे प्रमाण मूलक नही। सत्य, हिसा, दया,