पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/२६

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (७) धूतता की मूर्ति कह कर प्रसिद्ध करने मे कोई बात उठा नहीं रक्खी है और लार्ड मेकाले ने तो इन्हें "धूर्त बङ्गाली" कहने मे कुछ भी पागा पीछा नहीं किया है, परन्तु ये बङ्गाली नही थे, ये पश्चिम देशीय हिन्दू वणिक थे। केवल बङ्गाल बिहार मे वाणिज्य करने के लिये बङ्गाल में रहते थे। इन्हें केवल बणिक कहने से इनका पूरा परिचय नहीं होता। इनकी नाना विधि सामानो से सुसज्जित राजपुरी, इनका कुसुमदाम सज्जित प्रसिद्ध पुष्पोद्यान (बाग) इनका मणिमाणिक्य से भरा इतिहास में प्रसिद्ध राज भण्डार, इनका हथियार बन्द सैनिको से घिरा हुआ सुन्दर सिंहद्वार देखकर दूसरे की कौन कहे अग्रेज लोग भी इहें एक बडा राजा कह कर मानते थे । सेठो मे जैसे जगतसेठ थे वणिको मे वैसे ही इनका मान्य और पद गौरव नवाब के दर्बार में था। अग्रेज वणिक जब विपद मे पडते तभी इन के शरणापन्न होते थे, और कई बार केवल इही की कृपा से इनको लज्जा रक्षा होने का कुछ कुछ प्रमाण पाया जाता है। अग्रेज लोग केवल इन्हीं की सहायता पाकर बङ्गाल देश में अपना वाणिज्य फैला सके थे। इन्हीं की सहायता से गाव गाँव में अमेज़ लोग दादनी देकर रई मौर कपडे लेकर बहुत कुछ धन उपाजन करते थे। यह सुविधा न मिलती तो इस अपरिचित विदेश मे अग्रेजो को अपनी शक्ति फैलाने का अवसर मिलता कि नहीं इसमे सन्देह होता है। परन्तु देशी लोगो के साथ जान पहिचान हो जाने पर देव कोप से अग्रेज लोग इनकी उपेक्षा करने लगे। जिस समय सिराजुद्दौला 1 The extent of his habitation, divided into various departments, the number of his servants continually ema. ployed on various occupations and a retinue of armed men in constant pay, resembled more the state of a prince than the condition of a merchant --Orme, Vol II 50 2 He had acquired so much influence with the Bengal Government, that the Presidency, in times of difficulty, used to employ his mediation with thc Nowab --Orme, Vol II, 50