पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/३१

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(१२) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र पाप के पास उत्तर ला दूंगा।"१ अग्रेज लोग इतिहास लिखने के समय अमीचन्द के सिर चाहे जैसी कटुक्ति कर वा दोषी ठहरावै परन्तु ऐसे कठिन समयो मे उनकी सहायता बड़े हर्ष से लेते रहे है और केवल सन्देह ही सन्देह पर अपना काम निकल जाने पर उनके साथ असद्व्यवहार करते रहे हैं। यदि इनकी सहायता न मिलती तो नवाब दर्बार या राजा मानिकचन्द प्रभृति तक उनके पत्र तक नहीं पहुँच सकते थे। जो राजा मानिकचन्द अग्रेजो के खून के प्यासे थे वह केवल अमीचन्द के उद्योग से अग्रेजो का दम भरने लगे। जगतसेठ और अमीचन्द हर एक प्रकार से अग्रेजो की मङ्गल कामना नवाब दर्बार मे करने लगे। अमीचन्द ने लिखा कि "नवाब के डर से कोई बोल नहीं सकता है पर खवाजा बजीद प्रादि प्रसिद्ध सौदागर लोग अग्रेजो के फिर आने के लिये उत्सुक हैं।" निदान फिर अग्रेजों का कलकत्ते में प्रवेश हुआ। अब नवाब की इच्छा अग्रेजो से सन्धि कर लेने की हुई। वह स्वय कलकत्ता पाए और अमीचन्द के बारा में दर्बार हुमा । अग्रेजो के दो प्रतिनिधि पाए और सन्धि की बातें निश्चित हुई। परन्तु कुचक्रियो ने अग्रेजो को भडका दिया, अनायास रात को अग्रेजो 1 Consultations on board the Rhomaa Schooner, Fulta, August 22, 1756 2 Omichand and Manik Chand were at this time in friendly correspondenc with the English they negotiated at this time between the Nawab and the English understanding how to run with the bore and keep with the bound -Revd Long 3 Omichand writes from Chunsura that Coja Wafid and other merchants would be glad to see the English return were it not for the fear of the Nabab --Revd Long 4 February 4, 1757 at seven in the evcning the Subah gave them audience in Omichand's garden, where he affected to appear in great state, attended by the best looking