पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/३२

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (१३) की तोप छूटने लगी। नवाब पहिले तो घबड़ाए पर अन्त मे अपने मन्त्रियो तथा सेनापति मीर जाफर की चाल समझ गए। ऐसे विश्वासघाती लोगो के भरोसे अग्रेजो से लडना उचित न समझ कर वहाँ से पीछे लौट आए और दूसरे स्थान पर डेरा डालकर अग्रेजो से सन्धि की बात करने लगे। अन्त मे सन्धि हो गई। इस सन्धि के द्वारा वाणिज्य का अधिकार मिला, कलकत्ता मे किला बनाने और टेकसाल खोलने की आज्ञा मिली और कलकत्ता की लूट मे जो हानि अग्रेजो की हुई थी वह नवाब ने देना स्वीकार किया। सन्धि के विरुद्ध सिराजुद्दौला के प्रादेश के विपरीत अग्रेजो ने फरासीसियो के किला चन्दननगर पर चढाई की। एक तो फरासीसी भी दृढ थे दूसरे महाराज नन्दकुमार भारी सेना लिए पास ही डेरा डाले थे, सामने पहुंच कर अग्रेजो को महा कठिनाई हुई परन्तु उस समय भी सेठ अमीचन्द ही काम पाए । उन्होने जाकर नन्दकुमार को समझाया और वह वहाँ से हट गए। अग्रेजो की जय सिराजुद्दौला अग्नेजो की इस धृष्टता पर बहुत ही चिढ गए। फिर अग्रेजो को दण्ड देने के लिये तयारिऍ होने लगी, परन्तु इस समय तक सारा देश सिराजुहौला के अत्याचार से दुखित था, नवाब के सभी मन्त्री विरुद्ध हो रहे थे। गुप्त मन्त्रणा होकर एक गुप्त सन्धिपत्र लिखा गया । इसमे ईस्ट इण्डिया कम्पनी को एक करोड, कलकत्ते के अग्रेज और प्रारमनी वणिको को ७० लाख और सेठ अमीचन्द को ३० लाख रुपया मिलने की बात थी इनके सिवाय और जिनको जो मिलना था वह अलग फद पर लिखा गया। सन्धि पत्र का मसौदा भेजने के समय वाटसन साहब ने लिखा था कि 'अमीचन्द जो चाहते हैं उसको देने मे आगा पीछा men amongst his Officers, hoping to intimate them by so warlıke an assembly --Strafton's Reflections 1 Nuncoomer had been brought by Omichand for this English and on their approach the troops of Sirajuddaulah were withdrawn from Chandannagar --Thomson's History of the British Empire, Vol I, p 223