पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/३८

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (१९) हुआ, परन्तु सुनते हैं कि ठाकुर जी और भी प्राचीन हैं । पहिले इनकी सेवा गोकुलचन्द्र साहो के यहाँ होती थी। बाबू हरिश्चन्द्र और बाबू गोकुलचन्द्र में जिस समय हिस्सा हुश्रा, उस समय एक बारा, बडा मकान, एक बडा ग्राम माफी और पचास हजार रुपया ठाकुर जी के हिस्से मे अलग कर दिया गया और ठाकुर जी का महा प्रसाद नित्य ब्राह्मण वैष्णव तथा सद्गृहस्थ लेते हैं। इनके दो विवाह हुए थे। प्रथम चम्पतराय अमीन की बेटी से। इन चम्पतराय का उस समय बडा जमाना था। सुनते है कि वह इतने बडे आदमी थे कि सोने की थाल मे भोजन करते थे। जिस समय चम्पतराय की बेटी व्याह कर आई तो यहाँ उन्हें मामूली बतन बतने पडे । इस पर उन्हो ने कहा "हाय, अब हमको इन बतनो मे खाना पडेगा।" अब एक चम्पतराय अमीन के बाग के अतिरिक्त और कोई चिन्ह इनका नहीं है । इनसे बाबू हर्षचन्द्र को कोई सन्तान नहीं हुई। दूसरा विवाह इनका बाबू वृन्दावनदास की कन्या श्यामा बीबी से हुआ। इन्हीं से इनको पाँच सन्तान हुई, जिन में से दो कन्या तो बचपन ही में मर गईं, शेष तीन का वश चला। यह बाबू वृन्दावन दास भी उस समय के बड़े धनिको मे थे, परन्तु पीछे इन का भी वह समय न रहा । इन के दो बारा थे, एक मौजा कोल्हुश्रा पर और दूसरा महल्ला नाटीइमली पर । ये दोनो बाग बाबू हर्षचन्द्र को मिले। बाबू वृन्दावनदास को हनुमान जी का बडा इष्ट था। इन के स्थापित हनुमान जी अब तक नाटीइमली के बाग मे है। एक समय श्री गिरिधर जी महाराज को चालिस सहस्र रुपए की आवश्यकता हुई। उन्होने बाबू हर्षचन्द्र से कहा कि इस का प्रबन्ध कर दो। इन्हो ने कहा महाराज इस समय इतना रुपया तो प्रस्तुत नहीं है । कोल्हुआ और नाटीइमली का बारा मैं भेंट कर देता हूँ, इसे बेच कर काम चला लीजिए। श्री महाराज का ऐसा प्रताप था कि एक कोल्हुमा का बारा चालीस हजार में बिक गया और नाटीइमली का बारा बच गया। इस बाग का नाम महाराज ने मुकुन्दबिलास रक्खा । यह अद्यावधि मन्दिर के अधिकार मे है और काशी के प्रसिद्ध बागों में एक है। इस वश से इस बारा से अब तक इतना सम्बन्ध शेष है कि काशी के प्रसिद्ध भरतमिलाप के मेले मे इसी बाग के एक कमरे में बैठ कर इस वश के लोग भगवान के दर्शन करते हैं और इस मे भगवान का विमान ठहरता है, तथा इस वश वाले जाकर पूजा भारती करते, भोग लगाते और भेट करते हैं। दो दिन और भी श्रीराम