पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/३९

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(२०) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र चन्द्र जी की पहुनई होती है, एक दिन बाग रामकटोरा मे और एक दिन चौकाघाट पर जिस दिन हनुमान जी से भेट होती है। यहाँ पर इस रामलीला का सक्षिप्त इतिहास लिख देना भी हम उचित समझते हैं। जब काशी मे जगल बहुत था (बनकटी के समय), उस समय यहा एक मेघा भगत रहते थे। उन्हें श्री भगवान के दशन की बडी लालसा हुई। उन्होने अनशन ब्रत लिया। एक दिन रामचन्द्र जी ने स्वप्न मे आज्ञा दी कि इस कलियुग मे इस चाक्षुष जगत मे हमारा प्रत्यक्ष दशन नहीं हो सकता। तुम हमारी लीला का अनुकरण करो। उस मे दर्शन होगा, तथा धनुष बाण वहाँ प्रत्यक्ष छोड गए, जिस की पूजा अब तक होती है। मेघा भगत ने लीला प्रारम्भ की और उनकी मनोवासना पूरी हुई। यह लीला चित्रकोट की लीला के नाम से प्रसिद्ध हुई। जिस दिन श्री रामचन्द्र की झलक मेघा भगत को झलकी थी, वह भरतमिलाप का दिन था और तभी से यह दिन परम पुनीत समझा गया, तथा अब तक लोगो का विश्वास है कि उस दिन रामचन्द्र जी की झलक पा जाती है । इस लीला के पीछे गोस्वामी तुलसीदास जी ने लीला प्रारम्भ की, जो अब अस्सी पर तुलसीदास जी के घाट पर होती है, और उसके पीछे लाट भरव की लीला प्रारम्भ हुई। इस लाटभैरो की लीला में 'नककटया' (शूर्पनखा की नाक काटने की लीला) मसजिद के भीतर होती है, जो मुसलमानो की अमलदारी से चली आती है, और प्राय इस के लिये काशी मे हिन्दू मुसलमानो मे झगडा हुआ किया है। निदान मेरी समझ में रामलीला की प्रथा सब प्रथम ससार मे मेघा भगत ने प्रारम्भ की। इस लीला की यहाँ प्रतिष्ठा बहुत ही अधिक है। सब महाजन लोग इसमे चिट्टा भरते हैं और प्रतिष्ठित लोग बिना कुछ लिए सब सेवा करते है । इस चिट्टे का प्रारभ पहिले बाबू जानकीदास और उक्त बाबू हर्षचन्द्र के वशवाले करते है और फिर नगर के सब महाजन यथाशक्ति लिखते है । पहिले तो विजया दशमी के दिन यहाँ के बड़े बड़े महाजन, रात्रि को जब बिमान उठता था, जामा पगडी पहिर कर कन्धा लगाते थे। अब तक भी बहुत लोग कन्धा देते हैं। विजया दशमी और भरत मिलाप मे अब तक प्राचीन मर्यादावाले लोग पगडी पहिर कर दशन को जाते हैं। भरत मिलाप यहाँ के प्रसिद्ध मेलो में है। सारा शहर सूना हो जाता है और भरत मिलाप के स्थान से लेकर 'अयोध्या' तक, जिसमे लगभग प्राधी मील