पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/४०

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (२१) का अतर होगा, मनुष्य ही मनुष्य दिखाई देते हैं । भरतमिलाप ठीक गोधूली के समय होता है। इस दिन दर्शनो के लिये काशिराज भी पाया करते हैं। सुनते हैं एक समय किसी अँगरेज हाकिम ने कहा कि हनुमान जी तो समुद्र पार कूद गए थे, तब हम जानें जब तुम्हारे हनुमान जी वरुणा नदी पार कूद जायें। हनुमान जी चट कूद गए, परन्तु उस पार जाते ही उनका प्राणान्त हो गया। उस अंगरेज की सार्टिफिकेट अब तक महन्त के पास है। ___ बाबू हरिकृष्णदास टेकमाली ने अपने ग्रन्थ "गिरिधरचरितामृत" मे उनका चरित्र वर्णन करते समय लिखा है कि ये कविता भी करते थे, परन्तु अब तक इनकी कविता हम लोगो के देखने में नहीं आई। इनका स्वभाव बडा ही अमीरी और नाजुक था, जनाने मर्दाने सब घरो मे फौवारे बने थे। गर्मियो मे जहाँ वह बैठते फौवारा छूटा करते । एक दिन बाबू जानकीदास ने कहा कि आप बीमा का रोजगार क्यो नहीं करते यह बिना गुठली का मेवा है। इन्होंने उत्तर दिया "सुनिए बाबूसाहब हम ठहरे आनन्दी जीव, अपनी जान को बखेमे कौन फेसावे, सावन भादो की अँधेरी रात मे प्रानन्द से सोए हैं, पानी बरस रहा है, हवा के झोके पा रहे हैं, उस समय ध्यान आया नावो का, प्राण सूख गया, विचारा इस समय हमारी दस नाव गगाजी मे हैं कहीं एक भी डूबी तो दसहजार की ठुकी, चलो सब आनन्द मिट्टी हुआ"। ____ जौनपुर के राजा शिवलाल दूबे से इनसे बहुत ही स्नेह था, नित्य मिलना और हवा खाने जाने का नियम था। सन् १८६० ई० मे गवर्मेन्ट ने इनकम टैक्स लगाया था और काशी से सवालाख रुपया वसूल करने की आज्ञा दी थी। इसके प्रबन्ध के लिये एक कमिटी बनाई गई थी जिसका प्रबन्ध इनके हाथ मे था । गोपालमन्दिर के दोनो नक्कारखाने इन्हीं के यहाँ से बने हैं। एक तो बाबू गोपालचन्द्र के जन्म पर बना था और दूसरा बाबू हरिश्चन्द्र के जन्म पर । हम श्री मुकुन्दरायजी के मन्दिर तथा श्री गिरिधरजी महाराज के विषय मे ऊपर लिख चुके हैं परन्तु कुछ बातें और भी लिखनी आवश्यक रह गई हैं । जिस समय मन्दिर बनकर तयार हुआ और श्री मुकुन्दरायजी यहाँ पधारे यहाँ के महाजनो ने, जिनमे ये प्रधान थे, बिचार किया कि इस मन्दिर के व्यय