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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (२५) एक बेर यह श्री जगन्नाथ जी के दर्शन को पुरी गए थे। तब तक रेल नहीं चली थी, अतएव खुशकी के रास्ते गए थे। बङ्गाल के प्रसिद्ध लाला बाबू' से इनके वश से मुर्शिदाबाद ही से बहुत सम्बन्ध था। एक दिन ये उनके यहाँ मेहमान हुए। वहाँ इनके ठाकुर श्री कृष्णचन्द्रमा जी का बहुत भारी मन्दिर और वभव है। सुना है कि इनके पहुंचते ही उनकी ओर से श्री ठाकुर जी का बालभोग महाप्रसाद पाया जो कि सौ चॉदी के थालो मे था। सब प्रसाद फलाहारी था और एक सौ ब्राह्मण लाए थे, जो सबके सब एक ही रङ्ग का पीताम्बर उपरना पहिरे हुए थे। इनका नाम तैलग देश मे बहुत प्रसिद्ध है। जो बडा दीवानखाना इन्होने बनवाया, उसके ऊपर एक छोटा मन्दिर भी श्री ठाकुर जी का है। उस पर स्वर्ण कलश लगे हुए हैं। उसी से सारे तैलङ्ग देश मे इनका नाम नवकोटि नारायण १ इस वश के अधिष्ठाता दीवान' गङ्गागोविन्द सिंह थे जो कि बारेन हेस्टिङ्गज के बनिया थे, और बडी सम्पत्ति छोड मरे। बङ्गाल मे ये पाइकपाडा के राजा के नाम से प्रसिद्ध है। परन्तु इनका मुय्य वासस्थान मौजा कादी जिला मुर्शिदाबाद है। इन्होने अपनी माता के श्राद्ध मे २० लाख रुपया व्यय किया था और उसमे समग्र बङ्गाल के राजा महाराजा पाए थे। ऐसा श्राद्ध कभी नही हुआ था। इनके वश मे राजा कृष्णचन्द्र सिंह प्रसिद्ध नाम लाला बाबू हुए। उन्होने अपने राज्यैश्वय को छोडकर श्री वृन्दावनमे बास किया। वहाँ वे मधुकरी मांग कर खाते थे।श्रीठाकुरजी का मन्दिर और वैभव काँदी और श्री वृन्दावन मे बहुत बढाया (See Growse's Mathura)। इनके विषय मे भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र जी अपने उत्तरार्द्ध भक्तमाल मे लिखते हैं-- लाला बाबू बङ्गाल के वृन्दावन निवसत रहे । छोडि सकल धन धाम वास ब्रज को जिन लीनो॥ मागि मागि मधुकरी उदर पूरन नित कीनो । हरि मन्दिर अति रुचिर बहुत धन दै बनवायो। साधु सन्त के हेत अन्न को सत्र चलायो । जिनकी मत देहहु सब लखत ब्रज रज लोटत फल लहे ।। २ तेलङ्ग देश मे कोई नवकोटि नारायण बडे धनिक हो गए है। इन्हें वहा के लोग एक अवतार मानते हैं गौर इनके विषय मे नाना किम्बदन्ती उस देश में प्रसिद्ध हैं। इनका पूरा इतिहास Indian Antiquary मे छपा है।