पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/४५

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(२६) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र नाम से प्रसिद्ध हो गया है और यावत् तैलङ्गी लोग इस कलश के दर्शनार्थ आते और हाथ जोड जाते है। यह बात काशी के यावत् यात्रावालो को विदित है, जहाँ उन्होने नवकोटि नारायण का नाम लिया, वह यहाँ ले पाए । बाब हर्षचन्द्र एक वसीयतनामा लिख गए थे जिसके द्वारा कोठी के प्रबन्ध का भार बिजीलाल को सौप गए थे। बाबू गोपालचन्द्र की अवस्था उस समय केवल ११ वष की थी, बिञ्जीलाल प्रबन्ध करने लगे परन्तु प्रबन्ध सतोषदायक न हो सका और उस समय जसी कुछ क्षति इस घर की हुई वह अकथनीय है । उस समय काशी के रईसो मे बडा मेल था, बाबू वृन्दावनदास (बाबू गोपालचन्द्र के मातामह) ने राय खिरोधर लाल की सहायता से कोठी मे ताला बन्द कर दिया और अदालत में कोठी के प्रबन्ध के लिये दर्खास्त दी परन्तु वसीयतनामा के कारण ये लोग हार गए और प्रबन्ध बिजीलाल ही के हाथ रहा इस समय बहुत कुछ हानि कोठी की हुई और और भी अधिक होती परन्तु बाबू गोपालचन्द्र की बुद्धि चमत्कारिणी थी उन्होने १३ ही वष की अवस्था मे अपना कार्य श्राप संभाल लिया और फिर किसी को कुछ न गलने पाई। बाबू गोपालचन्द्र बाबू हर्षचन्द्र की बडी अवस्था हो गई और कोई पुत्र सन्तान न हुई। एक दिन यह श्री गिरिधर जी महाराज के पास बैठे हुए थे। महाराज ने पूछा बाबू, आज तुम उदास क्यो हो? लोगो ने कहा कि इनकी इतनी अवस्था हुई, परन्तु कोई सन्तान न हुई, बश कैसे चलेगा, इसी की चिन्ता इन्हें है। महाराज ने प्राज्ञा की कि तुम जी छोटा न करो। इसी वष तुम्हें पुत्र होगा। और ऐसा ही हुआ। मिती पौष कृष्ण १५, सवत् १८६० को कविकुलचूडामणि बाबू गोपालचन्द्र का जन्म हुआ। केवल श्री गिरिधर जी महाराज की कृपा से जन्म पाने और उनके चरणारविन्दो मे अटल भक्ति होने के कारण ही इन्होने कविता मे अपना नाम गिरिधरदास रक्खा था।