पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/५०

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र {३१) हुए हो, कसे सुशिक्षित और सच्चरित्र हो सकते है। परन्तु आश्चय है कि इनके विषय मे सब विपरीत ही हुआ। इनका सा विद्वान और सच्चरित्र ढूढने से कम मिलेगा। इसका कारण चाहे भगवत कृपा समझिए या ऋषि तुल्य गुरु श्री गोस्वामी गिरधर जी महाराज का आशीर्वाद, सहवास और शिक्षा । जो कुछ हो, इनकी प्रतिभा विलक्षण थी। नियम पूर्वक शिक्षा न होने पर भी सस्कृत और भाषा के ये ऐसे विद्वान थे कि पण्डित लोग इनका आदर करते थे। चरित्न इनका ऐसा निमल था कि काशी के लोग इन्हें बहुत ही भक्तिभाव से देखते थे, यहाँ तक कि प्रसिद्ध कमिश्नर मिस्टर गबिन्स ने अपनी रिपोट मे लिखा था कि "बाबू गोपालचन्द्र परकटा फरिश्ता है"। सन् ५७ के बलबे मे रेजिडेन्सी के चांदी सोने के असबाब आसा बल्लम आदि इन्हीं की कोठी में रक्खे गए थे। क्रोध तो इन्हें कभी आता ही न था, पर जव कोई गोपालमन्दिर आदि धम सम्बन्धी निन्दा करता तो बिगड जाते। रामसिंहदास प्राय चिढाया करते थे। इनके विचार कैसे थे, यह पाठक पूज्य भारतेन्दुजी के निम्न लिखित वाक्यो से, जो उन्होने 'नाटक' नामक ग्रन्थ मे लिखे हैं जान सकते है। "बिशुद्ध नाटक रीति से पात्रप्रवेशादि नियम रक्षण द्वारा भाषा का प्रथम नाटक मेरे पिता पूज्य चरण श्री कविवर गिरिधरदास (वास्तविक नाम बाबू गोपालचन्द्र जी) का है। मेरे पिता ने विना अगरेजी शिक्षा पाए इधर क्यो दृष्टि दी, यह बात पाश्चय की नहीं है। उनके सब विचार परिष्कृत थे। बिना अंगरेजी की शिक्षा के भी उनको वर्तमान समय का स्वरूप भली भॉति विदित था। पहिले तो धर्म ही के विषय मे वे इतने परिष्कृत थे कि बैष्णव व्रत पूर्ण के हेतु अन्य देवता मात्र की पूजा और व्रत घर से उन्होंने उठा दिया था। टामसन साहब लेष्टिनेंट गवनर के समय काशी मे पहिला लडकियों का स्कूल हुना तो हमारी बडी बहिन को इन्होने उस स्कूल मे प्रकाश्य रीति से पढ़ने बैठा दिया। यह कार्य उस समय मे बहुत कठिन था, क्योकि इसमे बडी ही लोकनिन्दा थी। हम लोगो को अगरेजी शिक्षा दी। सिद्धान्त यह कि उनकी सब बातें परिष्कृत थीं और उनको स्पष्ट बोध होता था कि आगे काल कैसा चला प्राता है। केवल २७ वर्ष की अवस्था मे मेरे पिता ने देहत्याग किया, किन्तु इसी अवस्था मे ४० ग्रन्थ बनाए।" विद्या की इन्हें ऐसी चि थी कि बहुत धन व्यय करके वृहत सरस्वती भवन का सडग्रह किया था जिसमे बडी अलभ्य और अमूल्य ग्रन्थों का सग्रह है। डाक्तर राजेन्द्र लाल मित्र इस पुस्तकालय का मुल्य एक लाख रुपया दिलवाते थे। इन ग्रन्थो का पहाड बनाकर उस पर सर