(३२) भारतेन्दु वाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न स्वती देवी की मूर्ति स्थापन करके आश्विन शुक्ला सप्तमी से तीन दिन तक उत्सव करते थे जो अब तक होता है । अपने चौखम्भास्थित भवन मे इन्होने एक पाईं बाग श्री ठाकुर जी के निमित्त बहुत सुन्दर बनवाया। वाग रामकटोरा के सामने सडक पर रामकटोरा तालाब का जीर्णोद्धार बहुत रुपया लगाकर किया था। यह तालाब चारो ओर से पक्का बंधा है। पहिले इसमे कटोरे की तरह पानी भरा रहता था पर अब म्यूनिसिपलिटी की कृपा से नल ऊँची हो जाने से पानी कम पाता है। इस तालाब पर एक मन्दिर बनवाकर सब देवताओं की मूर्ति स्थापन करने की इच्छा थी पर पूरी न हो सकी। मूर्तिये मत्यतही सुन्दर बनवाया था जो अब तक रक्खी है। ___बान का भी इन्हें शौक था। सन् १८६४ मे यहाँ एक ऐग्रीकल्चरल शो (कृषि प्रदशिनी) हुई थी उसमे इन्हें इनाम और उत्तम सर्टिफिकेट मिली थी। दिनचर्या व्यसन इन्हें भगवत्सेवा या कविता के अतिरिक्त कोई भी न था। जाडे के दिनो मे सबेरे तीन बजे से उठते और मन्दिर के भृत्यो को बुलवाते, और गर्मी के दिनो मे पाँच बजे शौचादि से निवृत्त होकर कुछ कविता लिखते। शौच जाते समय कलम दावात काराज बाहर रक्खा रहता । यदि कुछ ध्यान प्राजातातो शौच से निकलते ही हाथ धोकर लिख लेते, तब दतुयन करते । कभी घर मे श्री ठाकुर जी की सेवा मे स्नान करने के पहिले श्री मुकुन्दराय जी के दर्शन को तामजाम पर बैठ कर जाते और कभी अपने यहाँ भृङ्गार की सेवा मे पहुँच कर तब जाते। घर मे भी ठाकुर जी की शृङ्गार की सेवा से निकल कर कविता लिखते, लेखक चार पाँच बैठे रहले और उनको लिखवाते, राजभोग भारती करके दस ग्यारह बजे श्री ठाकुर जी की महाप्रसादी रसोई खाते । भोजनोपरान्त कुछ देर दर्वार करते थे। और घरके काम काज देखते । फिर दोपहर को कुछ देर सोते। तीसरे पहर को फिर दार लगता। कविकोविदो का सत्कार करते, कविता की