पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/५२

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (३३) चर्चा रहती, सध्या को हवा खाने जाते, गाडी तक तामजाम पर जाते । रामकटोरा वाले बाग मे भाँग पीते । शौच होकर घर आते । हवा खाकर पाने पर फिर दर लगता। रात्रि को बस बजे तक भोजन करके सोते । सबेरे बिना कम से कम पॉच पद बनाए भोजन न करते । सध्या को सुगन्धित पुष्प का गजरा या गुच्छा पास मे अवश्य रहता । रात्रिको पलग के पास एक चौकी पर कागज, कलम, दावात रहती, शमेदान रहता, एक चौकी पर पानदान और इनदान रहता। रात्रि को कविता कुछ अवश्य लिखते । स्वभाव हसोड बहुत था, इसलिये जब बैठते, हँसी दिल्लगी होती, परन्तु दर्बार के समय नहीं । प्रति एकादशी को जागरण करते। बडा उत्सव करते थे। इनकी एक मौसी थीं, वह स्वभाव की चिडचिडही अधिक थीं और इन्हीं के यहाँ रहती थीं। इन्हें ये प्राय चिढाया करते थे इन्हें चिढाने के लिये यह कविता बनाया था - घडी चार एक रात रहे से उठी घडी चार एक गङ्ग नहाइत है। घडी चार एक पूजा पाठ करी घडी चार एक मन्दिर जाइत है। घडी चार एक बैठ बिताइत है घडी चार एक कलह मचाइत है। बलि जाइत है ओहि साइन की फिर जाइत है फिर आइत है। - - . - - कवियो का आदर इनके दर्बार मे कवियो का बडा आदर होता था। इनके यहाँ से कोई कवि विमुख न फिरता । यद्यपि इनके दर्बारी कवियो का पूरा वृत्तान्त उपलब्ध नहीं है, तथापि दो तीन कवियो का जो पता लगा है, वह प्रकाशित किया जाता है। एक कवि जी को (इनका नाम कदाचित ईश्वर कवि था) एक चश्मे की आवश्यकता थी। उन्हो ने एक कबिता बना कर दिया। उन्हें तुरन्त चश्मा मिला। उस कवित्त का अन्तिम चरण यह है-