पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/५३

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(३४) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न "खसमामुखो के मुख भसमा' लगाइवे को एहो धनाधीश हमे चाहत एक चसमा"। एक कवि जी की यह कविता उपलब्ध हुई है-- परलिया छन्द--"बठे है बिराजो राज मन्दिर मो कियो साज सर्म को साज आसय आजिम अचल है। दविता को रहे अरि सविता को सागर मो कविता कमलता से सचिता सबल है। कहै कविराज कर जोरे प्रभू गोपालचन्द्र ए बचन बिचारो मेरो विद्या की विमल है। बगर बडाई कोरु सर सोलताई को सुभाजन भलाई को सभाजन सकल है ॥१॥ दोहा । जहाँ अधिक उपमेव है छीन होत उपमान । अलकार वितरेक को किज्जत तहाँ बिनान ॥ जथा। बुध सो बिरोधे सकल कलानिधि देखो दु पश्य निर्मल सो न आदर सहै। गुरु से ईस मै गुरुज्ञान में विलोकियतु कबिता अनेक कबिताई को सरस है ॥ द्वार आगे हैं राजत गजराज फेरियत रीशि रीशि दीजियत पायन परससु (स?) है। कहैं सभू महाराज गोपालचन्द्र जू धरमराज की सभा ते सभा रावरी सरस है। पडित हरिचरण जी अपने सस्कृत पत्र में लिखते हैं --"यशोदा गर्भजे देवि चतुर्वर्ज फल प्रदे। श्री मद्गोपालचन्द्राख्य श्चिरायुष्क्रिय तान्त्वया ॥ साबणिरि त्याद्यारभ्य सावरिण भविता मनु । इत्यन्त शत सख्यात पाठ सकल्प्य दीयत्ताम्"। सुप्रसिद्ध कवि सरदार ने इनके बलिराम कथामृत के प्रादि से "स्तुति प्रकाश" को लेकर उस पर टीका लिखी है। उसमे उक्त कवि ने इनके विषय में जो कुछ लिखा है उसे हम उद्धृत करते हैं। छप्प "बिमल बुद्धि कुल बैस बनारस वास सुहावन। फतेचद आनन्दकन्द जस चन्द बढावन । हरषचन्द ता नन्द मन्द बैरी मुख कीने । तासुत श्री गोपालचन्द कविता रस भीने॥ दश कथा अमृत बलराम मैं अस्तुति उह भूषन दियो । तेहि देखि सुबुध सरदार कबि बुधि समान टीका कियो। १ मुखरा सरस्वती के मुख मे भस्म लगाने के लिये अर्थात कविता लिखने के लिये।