पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/५४

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (३५) दोहा लोक बिभू ग्रह सभु सुत रद सुचि भादव मास । कृष्णजन्म तिथि दिन कियो पूरन तिलक बिलास ।" इस प्रथ का कुछ प्रश भी हम यहा पर उद्धत करते ह "स्तुति प्रकाशिका" कवि सरदार कृत टीका आदि टीका का। श्री गोपीजन बल्लभायनम ।दोहा। सुमन हरष धारे सुमन बरषत सुमन अपार । नन्द नन्दन आनन्द भर वन्दत कवि सरदार ॥१॥ गिरिधर गिरिधर- दास को कियो सुजस ससि रूप । तिहि तकि कवि सरदार मन बाढो सिन्धु अनूप ॥२॥ कुवुधि भूमि लोपित ललित उमग्यो वारि विचार ॥ करन लग्यो रचना तिलक उर धरि पवन कुमार ॥३॥ पवन पुत्र पावन परम पालक जन पन पूर। परि घालन सालन सदा दस सिर उर सस सूर ॥४॥ मूल । प्रभु तव वदन चन्द सम अमल अमन्द । तमहारी रतिकारी करत अनन्द ।। टीका प्रभु इति । उक्ति ब्रह्मा की है। प्रभु तुमारो बदन चन्द सम अमल अमद तम हरन रति करन प्रीति करन आनन्द करन है। वदन उपमेय चन्द उप- मान । सम वाचक । अमल । आदिक साधारन धम । तातें पूर्णोपमालङ्कार। प्रश्न । साधारन धर्म का कहावै । जो उपमान उपमेय दोउन मे होय । सो अमलता और अमन्दता चन्द्रमा मे दोऊ नाही यातें उपमेय मे अधिकता पाए तें बितरेक काहे न होइ । उत्तर ॥ जब छोर समुद्र तें चन्द्रमा निकरो ता समय अमल अमन्द रहो। यातें इहाँ पूरन उपमा होइ है ताको लच्छन । भारती भूषने। ।दोहा। उपमानरू उपमेय जहँ उपमा वाचक होइ । सह साधारन धर्म के पूरन उपमा सोइ ॥१॥ जथा। मुख सुखकर निसिकर सरिस सफरी से चल नैन । छीन लङ्क हरिलङ्क सी ठाढी अनॉ अन ।। मुख उपमेय सुखकर धम निसिकर उपमान । सरिस बाचक । पुन सफरी उपमान । से । बाचक । चल धर्म । नैन उपमेय । पुन छीन धर्म लँक उपमेय हरिलस उपमान । सो वाचक याते पूर्णोपमा। तहाँ प्रश्न के ब्रह्मा ने अन्यगुन छोडि अलकार मैं स्तुति करी। ताको अभिप्राय । उत्तर । कसादिकन के वासतें अन्य ठॉव दूषन भरि गए एक प्रभु