पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/६४

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र ___ इनको बुद्धि बचपनही से प्रखर और अनुसन्धानकारिणी थी। एक दिन पिता को तर्पण करते देख आप पूछ बैठे "बाब जी पानी मे पानी डालने से क्या लाभ ?" धार्मिकप्रवर बाबू गोपालचन्द्र ने सिर ठोका और कहा “जान पडता है तू कुल बोरगा" । देव तुल्य पिता के आशीर्वाद और अभिशाप दोनो ही एक एक अश मे यथा समय फलीभूत हुए, अर्थात् हरिश्चन्द्र जैसे कुल मखोज्वलकारी हुए, वैसे ही निज अतुल पैतृक सम्पत्ति के नाशकारी भी हुए। शिक्षा नौ वष की अवस्था मे पितहीन होकर ये एक प्रकार से स्वतन्त्र हो गए। जिनकी स्वतन्त्र प्रकृति एक समय बडे बडे राजपुरुषो और स्वदेशीय बडे बडे लोगों के विरोध से न डरी उनको बालपन मे भी कौन पराधीन रख सकता था, विशेष- कर विमाता और सेवकगण? तथापि पढने के लिये वे कालिज मे भरती किए गए। यथा समय कालिज जाने लगे। उस समय अग्रेजी स्कूलो मे लडको के चरित्र पर विशेष ध्यान रखा जाता था। पान खाकर कालिज में जाने का निषेध था । पर परम चपल और उद्धत स्वभाव ये कब मानने लगे थे, पान का व्यसन इन्हें बच- पन ही से था, खूब पान खा कर जाते और रास्ते मे अपने बाग (रामकटोरा) मे ठहर कर कुल्ला करके तब कालिज जाते । पढने में भी जसा चाहिए वैसा जी न लगाते, परन्तु ऐसा कभी न हुआ कि ये परिक्षा में उत्तीर्ण न हुए हो । एक दो बेर के सुनने और थोडे ही ध्यान देने से इन्हें पाठ याद हो जाता था और इनकी प्रखर बुद्धि देख कर अध्यापक लोग चमत्कृत हो जाते थे। उस समय अग्रेग्री शिक्षा का बडा अभाव था। रईसो मे केवल राजा शिवप्रसाद अग्रेजी पढे थे, अतएव इनका बडा नाम था। ये भी कुछ दिनो तक उनके पास अग्रेजी पढने जाया करते थे। इसी नाते ये सदा राजा साहब को 'पूज्यतर, गुरुवर' लिखते और राजा साहब इन्हें प्रियतर, मित्रवर, लिखते थे। तीन चार वर्ष तक तो पढ़ने का क्रम चला। कालिज मे अग्रेजी और सस्कृत पढते थे, पर रसिकराज हरिश्चन्द्र का झुकाव उस समय भी कविता की ओर था। परन्तु वही प्राचीनढरेशृगार रस की। उस समय का उनका लिखा एक संग्रह मिला है जिसमे प्राय शृगार ही की कविताएँ