पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/७१

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(५२) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र नारायण सिह, पण्डित हुँढि राजशास्त्री, श्रीराधाचरणगोस्वामी, पण्डित बद्रीनारा- यण चौधरी, राव कृष्णदेवशरण सिंह, पण्डित बापूदेव शास्त्री, प्रभूति विद्वज्जन इसके लेखक थे। इसी समय सन् १८७४ ई० मे इन्होने स्त्रीशिक्षा के निमित्त 'बालाबोधिनी' नाम की मासिकपत्रिका भी निकाली, जिसके लेख स्त्रीजनोचित होते थे। यही समय मानो नवीन हिन्दी की सृष्टि का है। यद्यपि भारतेन्दु जी ने सन् १८६४ ई० से हिन्दी गद्य पद्य का लिखना प्रारम्भ किया था और सन १९६८ में 'कविवचनसुधा' का उदय हुआ, परन्तु इसे स्वय भारतेन्द्र जी हिन्दी के उदय का समय नहीं मानते । वह मैगजीन के उदय (सन् १८७३ ई०) से ही हिन्दी का पुनर्जन्म मानते हैं। उन्हो ने अपने 'कालचक्र' नामक ग्रन्थ मे लिखा है "हिन्दी नये चाल मे ढली (हरिश्चन्द्री हिन्दी ) सन १८७३ ई०।" वास्तव मे जैसी लालित्यमय हिन्दी इस समय से लिखी जाने लगी वसी पहिले न थी। पेनी रीडिड्न इसी समय इन्होने 'पेनीरोडिङ्ग' ( Penny Reading ) नामक समाज स्थापित किया था जिस मे स्वय भद्र लोग तरह तरह के अच्छे अच्छे लेख लिख कर लाते और पढते थे। मैगजीन के प्राय सभी अच्छे अच्छे लेख इस समाज मे पढे गए थे। स्वय भारतेन्दु जी को दो मूर्तियाँ आज तक आखो के सामने घूमती हैं--एक तो श्रान्त पथिक बनकर आना और गठरी पटक पैर फला कर बैठ जाना आदि, और दूसरी पांचवें पैगम्बर की मूर्ति । इस समाज के प्रोत्साहन से भी बहुत से अच्छे अच्छे खेल लिखे गए। इसी समय के पीछे 'क'रमजरी' 'सत्य हरिश्चन्द्र' और 'चन्द्रावली' की रचना हुई, जो कि सच पूछिए तो हिन्दी की टकसाल हैं। जैसा ही अपने ग्रन्थो पर इन्हे स्नेह था उस से कहीं बढ कर इनका प्रेम दूसरे उपयुक्त प्रन्थकारी पर था। कितने ही नवीन और प्राचीन ग्रंथ इनके व्यय से मुद्रित और विना मूल्य वितरित हुए। वास्तव मे यदि हरिश्चन्द्र सरीखा उदार हृदय, रुपये को मट्टी समझने वाला, गुणग्राही नायक हिन्दी की पतवार को १ खेद का विषय है कि ( हरिश्चन्द्री हिन्दी ) इतना लेख जो स्वय भारतेन्दु जी ने लिखा था उसे कालचक्र छपने के समय खड्गविलास प्रेस वालो ने छोड दिया है।