पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (५३) उस समय न पकडता और सब प्रकार से स्वार्थ छोडकर तन मन धन से इसकी उन्नति मे न लग जाता, तो आज दिन हिन्दी का इस अवस्था पर पहुंचना कठिन था। हरिश्चन्द्र ने हिन्दी तथा देश के लिये सारे ससार की दृष्टि में अपने को मिट्टी कर दिया। उदारता, ऋण उस समय के 'साहित्यससार' की कुछ अवस्था आप लोगो ने सुनी । अब कुछ 'व्यावहारिक ससार' मे भी हरिश्चन्द्र को देख लीजिए। जगदीश यात्रा के पीछे उदारहृदय हरिश्चन्द्र का हाथ खुला। हम ऊपर कह ही चुके हैं कि बडे मादमियो के लडको पर धूर्तों की दृष्टि रहती ही है, अत इन्हें भी लोगों ने घेरा। एक तो यह स्वाभाविक उदार, दूसरे इनका नवीन वयस, तीसरे यह रसिकता के प्रागार, फिर क्या था, धन पानी की भॉति बहने लगा। एक ओर साहित्य सेवा मे रुपए लग रहे हैं, दूसरी ओर दीन दुखियो की सहायता मे तीसरे देशोपकारक कामो के चन्दो मे चौथे प्राचीन रीति के धम कार्यों मे और पाँचवें यौवनावस्था के मानन्द विहारो मे । इन सभो से बढ कर द्रव्य की ओर इनकी दृष्टि न रहने के कारण, अप्रबन्ध तथा अथलोलुप विश्वासघातको के चक्र ने इनके धन को नष्ट करना प्रारम्भ कर दिया। एक धार से बहने पर तो बडे बडे नदी नद सूख जाते हैं, तो फिर जिसके शतधार हो उसका कौन ठिकाना! घर के शुभचिन्तको ने इन्हें बहुत कुछ समझाया, परतु कोन सुनता था ? स्वय काशीराज महाराज ईश्वरीप्रसाद नारायण सिंह बहादुर ने कहा "बबुना | घर को देख कर काम करो"। इन्होने निर्भीत चित्त हो उत्तर दिया “हुजूर | इस धन ने मेरे पूर्वजो को खाया है, अब मै इसे खाऊँगा"। महाराज अवाक्य रह गए। शौक इन्हें ससार के सौन्दय मात्र ही से था । गाने बजाने, चित्रकारी, पुस्तक सग्रह, अद्भुत पदार्थों का संग्रह (Museum), सुगन्धि की वस्तु, उत्तम कपडे, उत्तम खिलौने, पुरातत्व की बस्तु, लैम्प, बालबम, फोटोग्राफ इत्यादि सभी प्रकार को बस्तुप्रो का ये आदर करते और उन्हें संग्रहीत करते थे। इन के पास कोई गुणी पाजाय तो वह विमुख कभी न फिरता। कोई मनोहर बस्तु देखी और द्रव्य व्यय के विचार बिना चट