पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/७७

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न (५६) प्रबन्ध की त्रुटि के विषय की पाती, उन्हें ये मुक्तकठ से कह डालते और इस सुखमय शासन का वास्तविक लाभ जो अभागे भारतवासी नहीं उठाते, उसपर अवश्य परिताप करते थे। राजभक्त हरिश्चन्द्र अपनी सर्कार के दुख और सुख को अपना दुख और सुख मानते थे। कौन ऐसा अवसर था जब राजा के दु ख मे दुःख और सुख मे सुख इन्होने नहीं प्रकाश किया। ड्यूक पाए तब इन्होने महा महोत्सव किया और 'सुमनोञ्जलि' भेट की। प्रिन्स आफ वेल्स पाए तब भारत की यावत भाषामो मे कविता बनवाकर 'मानसोपायन' भेंट किया। इङ्गलैण्ड की रानी ने जब भारत को साम्राज्ञी का पद ग्रहण किया, तब भी इन्होने महा महोत्सव किया और 'मनोमुकुलमाला अर्पण की। काबुल विजय पर "विजयबल्लरी" बनी, मिथ विजय पर 'विजयिनी विजय बैजयन्ती' उड्डीयमाना हुई, प्रिन्स या महारानी कोई राज परिवार मे रुग्न हुए तब उनकी प्रारोग्य कामना के लिये ईश्वर से प्रार्थना की गई, कविता बनी। जब महारानी किसी दुष्ट की गोली से बची तब इन्होने महा महोत्सव मनाया, जिस की सराहना स्वय भारतेश्वरी ने की । जातीय सगीत (National Anthem) के लिये जो प्रतिष्ठित कमेटी बनी, उसके ये सभ्य हुए और उसका इन्होने अनुवाद किया। ड्यूक आफ अलबेनी की मृत्यु पर इन्होंने शोक प्रकाशक महासभा की। प्रति वर्ष महारानी की वर्षगांठ पर ये अपने स्कूल का वार्षिकोत्सव करते थे। निदान भारतेश्वरी के कोई सुख या दुख का ऐसा अवसर न था जब इन्होने अपनी सहानुभति न प्रकाश को हो-हाँ साथ ही ये 'भारतभिक्षा' ऐसे ग्रन्थो के द्वारा अपनी उदार सरकार से 'भिक्षा' अवश्य मॉगते थे, वह चाहे भले ही राजद्रोह समझा जाय । यो तो विरोधियों को डयूक आफ् अलबेनी के अकाल प्रसित होने पर इनका शोक प्रकाशक सभा करना भी राजद्रोह सुझाई पडा उन महापुरुषो ने सभा को अपरिणामदर्शी हाकिम की सहायता से रोक दिया, जिस के लिये भारतेन्दु से राजा शिवप्रसाद के द्वारा काशीराज से भी झगडा हो गया और बडे बखेडे के पीछे तब फिर से सभा हुई। हम इन की राज- भक्ति के विषय मे और कुछ नहीं कहा चाहते, वरन् इस का विचार पाठको के ही उदार और न्यायपूर्ण निर्णय पर छोडते हैं। समाज सुधार हमारे पाठको ने इन्हें उस समय के साहित्य ससार, व्यावहारिक वा पारि- वारिक ससार और राजकीय ससार मे देखा, अब कुछ सामाजिक ससार मे