पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(६०) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र भी देखे। इन्होने हिन्दू समाज वैश्य-अग्रवाल जाति में जन्म ग्रहण किया था और धर्म श्री बल्लभीय वैष्णव था। जो समय इन के उदय का था वह इस प्रान्त मे एक विलक्षण सन्धि का समय था। एक ओर पुरानी लकीर के फकीरो का जोर, दूसरी ओर नव्य समाज की नई रौशनी का विकाश । पुराने लोग पुरानी बातो से तिल- मान भी हटने से चिढते और नास्तिक, किरिस्तान, भ्रष्ट प्रादि की पदवी देते, नए लोग एक वारगी पुराने लोगो और पुरानी रीति नीति को रसातल भेज, ईश्वर के अस्तित्व में भी सन्देह करनेवाले थे। हरिश्चन्द्र इन दोनो के बीच विषम समस्या मे पडे। प्राचीन मर्यादावाले बडे घराने मे जन्म लेने के कारण प्राचीन लोग इन्हें जामा पगडी पहिना तिलक लगाकर परम्परागत चाल की भोर ले जाना चाहते थे। और नवीन सम्प्रदाय इन के बुद्धि का विकाश तथा रुचि का प्रवाह देखकर इन से प्राचीन धर्म और प्राचीन सम्प्रदाय को तिरस्कृत करने की प्राशा करते थे। परन्तु दोनो ही अशत निराश हुए। इन का मार्ग ही कुछ निराला था, इन्हें गुण से प्रयोजन था, ये सत्य के अनुगामी थे। किसी का भी क्यो न हो दोष देखा और मुक्तकठ हो कह दिया, असत्य का लेश पाया और पूर्ण विरोधी हुए। हिन्दू जाति, हिन्दू धम, हिन्दू साहित्य इन को परम प्रिय था। श्रीवल्लभीय वैष्णव सम्प्रदाय के पूरे अनुगामी थे। जाति भेद को मानकर अपनी वैश्य जाति के ऊपर पूर्ण प्रेम रखते थे, परन्तु साथ ही बुरी बातो को निन्दा डके की चोट पर कर देते थे, नि.शडू हो कर ऐसे ऐसे वाक्य लिख देते थे-- "रचि बहु बिधि के वाक्य पुरानन माहिं घुसाए । शैव शाक्त वैष्णब अनेक मत प्रगट चलाए। बिधवा ब्याह निषेध कियो व्यभिचार प्रचारयो । । रोकि बिलायत गयन कूप मडूक बनायो।। औरन को ससग छुडाइ प्रचार घटायो । बहु देबी देवता भूत प्रेतादि पुजाई॥ ईश्वर सो सब विमुख किए हिन्दुन घबराई । अपरस सोल्हा छूत रचि भोजन' प्रीति छुडाय ।। किए तीन तेरह सवै चौका चौका लाय" । "वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति" मे लिख दिया - "पियत भट्ट के ठट्ट अरु गुजरातिन के बृन्द । गौतम पियत अनन्द सो पियत अन के नन्द"॥